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पत्र : जवाहरलाल नेहरूको

कमला पूरी तरह स्वस्थ हो जायेगी। अगर उसके स्वास्थ्यके लिए ज्यादा दिन रहना जरूरी हुआ तो मैं समझता हूँ कि तुम वहाँ और रुकोगे। दलित राष्ट्र सम्मेलन (ऑप्रेस्ड नेशन्स कान्फ्रेन्स) की कार्रवाइयोंके बारेमें मैंने तुम्हारा सार्वजनिक विवरण और तुम्हारा निजी गोपनीय विवरण भी बहुत ध्यानसे पढ़ा। खुद मुझे तो इस संघसे बहुत आशा नहीं है, क्योंकि और कुछ कारण न भी हो तो भी यह तो है ही कि उसके स्वतन्त्र रूपसे कार्य करनेका दारोमदार उन्हीं सत्ताओंके सद्भावपर है, जो उक्त राष्ट्रोंके शोषणमें हिस्सेदार हैं और मेरा खयाल है कि यूरोपीय राष्ट्रोंके जो सदस्य इस संघमें शरीक हुए हैं वे अंतिम कसौटीपर टिक नहीं सकेंगे। कारण, जिस बातमें वे अपने स्वार्थकी हानि समझेंगे वे अपनेको उसके अनुकूल नहीं बना सकेंगे। हमारी ओर खतरा यह है कि हमारे लोग अपनी भीतरी शक्तिका विकास करके मुक्ति प्राप्त करनेके बजाय उसके लिए फिर बाहरी शक्तियोंका मुंह ताकने लगेंगे और बाहरी मदद ढूंढ़ने लगेंगे। मगर यह् तो कोरा तर्काश्रित मत हुआ। मैं यूरोपकी घटनाओंको ध्यान देकर समझते चले आनेका प्रयत्न तो बिलकुल ही नहीं कर रहा हूँ। तुम मौकेपर हो और सम्भव है तुम्हें वहाँके वातावरणमें सिद्धान्ततः कुछ करने योग्य सुधार दिखाई दे सकता है; किन्तु वह मुझे तो बिलकुल दिखाई नहीं देता ।

आगामी कांग्रेस अधिवेशन में तुम्हारे अध्यक्ष चुने जानेकी कुछ चर्चा है। इस बारेमें तुम्हारे पिताजीसे मेरा पत्र-व्यवहार [१] हो रहा है। हिन्दू-मुस्लिम प्रश्नपर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके सर्वसम्मत प्रस्तावके बावजूद लोगोंका रुख अच्छा कतई नहीं दिखता। पता नहीं कि सिर फोड़नेका यह सिलसिला किसी तरह रुकेगा भी या नहीं । आम लोगोंपर हमारा काबू नहीं रहा है और मुझे ऐसा दिखाई देता है कि अगर तुम अध्यक्ष बन गये तो आम लोगोंकी दृष्टिसे तुम कमसे-कम साल-भरके लिए तो ओझल हो ही जाओगे । फिर भी इसका यह अर्थ नहीं है कि कांग्रेसके कामकी उपेक्षाकी जाये । वह किसी-न-किसीको तो करना ही है। मगर ऐसे बहुतसे लोग हैं जो उसे करनेके लिए तैयार हैं और उत्सुक भी हैं। उनकी नीयत मिलीजुली या स्वार्थपूर्ण भी हो सकती है; परन्तु वे कांग्रेसकी गाड़ी किसी-न-किसी तरह चलाते रहेंगे। संस्था सदा उनकी मर्जीके मुताबिक चलेगी और उनके हाथमें रहेगी, जिनमें सामूहिक कार्य करनेके गुण होंगे और जिन लोगोंमें आम जनतापर नियन्त्रण रख सकनेका गुण होगा। तब प्रश्न यह है कि तुम्हारी सेवाओंका सर्वोत्तम उपयोग कैसे किया जा सकता है ? तुम्हारा अपना जो विचार हो, वही करो । मुझे मालूम है कि तुममें अनासक्त रहकर विचार करनेकी क्षमता है और तुम दादाभाई या मैक्स्विनीकी तरह बिलकुल निःस्वार्थ होकर कहोगे कि "यह ताज मेरे सिरपर रख दो" और मुझे कोई सन्देह नहीं कि वह तुम्हारे सिरपर रख दिया जायेगा। स्वयं मुझे मार्ग इतना स्पष्ट दिखाई नहीं देता कि मैं उस ताजको जबर्दस्ती तुम्हारे सिरपर रख दूं और तुमसे उसे पहननेका अनुरोध करूँ । यदि पिताजीका

  1. देखिए “पत्र : मोतीलाल नेहरूको", १४-५-१९२७