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३८१. पत्र : एच० क्लेटनको

नन्दी हिल्स
२५ मई, १९२७

प्रिय श्री क्लेटन,

इस मासके दिनांक १३ के मेरे पत्रका तत्काल ही और वह भी विस्तारसे उत्तर देनेके लिए मैं आपका अत्यन्त आभार मानता हूँ | मैंने १९१८ की नगर निगमकी कार्रवाईकी कतरन ध्यानपूर्वक पढ़ी है। इसमें ऐसी बात नहीं है, जिससे इस बातका समर्थन हो सके कि मैंने जाँच-पड़ताल की थी अथवा स्व० डा० टर्नरको कोई रिपोर्ट दी थी। चूँकि मुझे अस्पृश्यतासे सम्बन्धित हर चीजमें दिलचस्पी थी और मेरा 'सर्वोन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी' से गहरा सम्बन्ध रहा है, मुझे याद पड़ता है कि मैं श्री ठक्करके कहनेपर उनके साथ चालों और उन अभागे लोगोंको देखने गया था। जब डा० टर्नरने सुना कि मैंने चालोंको जाकर देखा है, तो उन्होंने मुझे एक सन्देशा भेजा और में प्रसन्नतापूर्वक उनसे मिला और मैंने चालोंमें जो कुछ किया था सो उन्हें बताया। इसे आप मेरे द्वारा जाँच-पड़तालका किया जाना या कोई रिपोर्ट देना नहीं कह सकते। यदि मैंने जाँच-पड़तालकी होती तो स्वाभाविक था कि मैं उसे उचित ढंगसे करता। मैंने लोगोंकी गवाही लिखित रूपमें ली होती । जिन अफसरोंपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गये थे, उनसे मिलता और कोई ठीक लिखित रिपोर्ट देता । हुआ यह था कि मैं अपने दौरेके दरम्यान उस समय बम्बई पहुँच गया था और जैसे दूसरे लोग मुझे बहुत-से अन्य स्थानोंपर ले गये, वैसे श्री ठक्कर मुझे चालोंमें ले गये। मैं नहीं समझता कि डा० टर्नरसे मेरी इस मुलाकात और बातचीतका प्रयोग सदा इस तरह किया जाना ठीक हो सकता है, जिससे श्री ठक्करकी इस प्रतिष्ठाको कि वे एक सावधानीसे तहकीकात करनेवाले व्यक्ति हैं, बट्टा लगे । बहरहाल में इस विवरणका सदुपयोग कर लेना चाहता हूँ । वर्तमान स्थितिमें मेरा इरादा समाचारपत्रों में कुछ कहनेका नहीं है। परन्तु श्री ठक्करसे मेरा पत्र-व्यवहार चल रहा है। मैं उन्हें आपके पत्रकी प्रति भेजनेकी घृष्टता कर रहा हूँ और उन्हें कुछ सुझाव दे रहा हूँ, जिनपर अमल करके तथाकथित भ्रष्टाचारकी यह बात सदाके लिए समाप्त की जा सके ।

मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ कि किसी चीज या व्यक्तिके प्रति निराधार दोषारोपण नहीं किये जाने चाहिए। जबतक समर्थनके लिए पर्याप्त प्रमाण न हों, निगमके कर्मचारियोंपर सर्वसामान्य आरोप नहीं लगाये जाने चाहिए। आपकी आज्ञासे श्री ठक्करसे पत्र-व्यवहार समाप्त करने के बाद मुझे आशा है कि मैं फिर अपने पत्रमें उठाये गये मुद्देके विषयमें लिखूंगा।