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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


आपने मेरे सम्बन्धमें जो पूछताछ की, उसके लिए आपका आभारी हूँ। मेरा स्वास्थ्य ठीक गतिसे सुधर रहा है। जब में अगली बार बम्बई होकर गुजरूंगा तो गोधरामें हुई अपनी मुलाकातकी मधुर स्मृतियोंको ताजा करने में मुझे निश्चय ही प्रसन्नता होगी ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १२९११) की माइक्रोफिल्मसे ।

३८२. पत्र : तोताराम सनाढ्यको

नन्दी दुर्ग
वैशाख कृष्ण ९ [ २५ मई, १९२७ ]

भाई तोतारामजी [१],

आपका पत्र मिला अब मैं समजा कि गंगादेवीका व्याधि किस प्रकारका है। दूसरा जो चल रहा है वह भी वैसा ही चले परंतु उनको बाहर ले जाकर घुमानेकी आवश्यकता है। अपने आप पैदल नहीं घूम सकती है। इसलिये या तो खुरसीपर बैठाकर लड़के ठीक आधे घंटेतक खुल्ले हवामें घुमावें या तो हाथगाड़ी में बैठाकर घुमावें। हाथगाड़ी में घुमानेसे एक दो लड़केसे काम निपट सकता है। और आरामसे लेट सकती है। आरामकी बड़ी आवश्यकता है। परंतु इतनी हि आवश्यकता खुल्ली हवाकी भी है। इतना करनेमें किसी प्रकारका संकोच नहीं रखना चाहिये । बाकी किसीको लिखनेकी आदत बहुत कम है और मेरे खतमें उसका कुछ भी इशारा करनेकी आदत मुझको नहीं है। बाकी वह हमेशा सबको याद करती है।

मेरे आशीर्वादमें बा के हमेशां सम्मिलित हैं वैसा ही गंगादेवी समजें ।

आप दोनों के धैर्यसे मुझको बड़ा ही आनंद होता है और मैं जानता हूं कि वह धैर्य हम सबके लिये अनुकरणीय है। ईश्वर हमेशा दोनोंकी शांति कायम रखें।

मेरा स्वास्थ्य ठीक होता जाता है।

बापूके आशीर्वाद

मूल (जी० एन० २५२९) की फोटो-नकलसे ।

  1. फोजीसे लौटे एक प्रवासी; साबरमती आश्रमके एक अन्तेवासी