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३८३. अत्यन्त असन्तोषजनक

मेरी इच्छा थी कि श्रीयुत सुभाषचन्द्र बोसकी रिहाईपर बंगालकी सरकारको धन्यवाद दे सकता । रिहाईकी मंजूरी इसलिए नहीं दी गई कि लोकमतने उसको माँग की थी, इसलिए भी नहीं कि कलकत्ता नगर निगमके मुख्य अधिकारीको सरकारने निर्दोष माना और इसलिए भी नहीं कि सरकारके विचारसे सुभाषबाबू उस जुर्मके लिए काफी सजा भुगत चुके हैं, जिसके बारेमें जानकारी न तो सुभाषबाबूको है और न जनताको । वरन् रिहाईकी मंजूरी तो इसलिए दी गई कि स्वयं सरकारके स्वास्थ्य अधिकारियोंकी रायमें वह प्रतिष्ठित बन्दी गम्भीररूपसे बीमार समझा गया - इतना बीमार कि उसका जीवन खतरेमें होनेकी आशंका थी। अगर सुभाषचन्द्र बोस समाज अथवा किसी व्यक्ति विशेषके जीवनके लिए एक खतरनाक आदमी हैं और यदि वे अपने निश्चयपर दृढ़ रहनेवाले व्यक्ति हैं, जैसी कि उनके बारेमें लोगोंकी धारणा है और स्वयं सरकारका भी जैसा विश्वास है, तो वे अधिक बीमार होनेपर आज भी किसी प्रकार कम खतरनाक नहीं हो गये हैं। फिर सरकार उनको जेलमें मरने देनेसे क्यों डर गई ? निश्चय ही सरकारका यह दस्तूर तो है नहीं कि जो भी कैदी ज्यादा बीमार पड़ जाये, उसे रिहा कर दिया जाये । और अगर उनकी बीमारीके कारण ही उन्हें रिहा कर देना मुनासिब था, तो उन्हें उसी समय क्यों नहीं रिहा किया गया, जब उनके शरीरमें क्षयरोगके लक्षण दिखाई दिये थे ? अखबारों में उनकी चिन्ताजनक बीमारीकी खबरें तो काफी दिनोंसे बराबर छपती आ रही हैं। कैदीके भाईने खुद भी सरकारको बार-बार कैदीकी बीमारी चिन्ताजनक होनेके विषयमें चेतावनी दी है ।

मैं तो यह कहना चाहता हूँ कि इस तरह एक मरणोन्मुख आदमीको उसके रिश्तेदारोंके हवाले कर देना और उसकी मृत्युकी जिम्मेवारी खुद लेनेसे बचना कायरता है। यह रिहाई बंगालके उन कैदियोंके प्रश्नको हल करानेमें हमारी जरा भी सहायता नहीं करती, जो सरकारके सन्देहभाजन बने और जो बिना जाँचके कैद कर लिये गये थे और जिन्हें सरकारने मुकदमा चलाये बिना अनिश्चित समयके लिए जेलमें डाल रखा है। बंगाल रेग्यूलेशन भी अभी जहाँका तहाँ ही है। अब इनसे कुछ कम या अधिक अस्वस्थ कैदियोंको जेलमें सड़ते रहना पड़ेगा, क्योंकि उनकी रिहाईके लिए जो आन्दोलन काफी जोरसे इसलिए हो रहा था, कि उनके साथ एक प्रभावशाली व्यक्ति भी कैद था, अब उसकी मदद भी उन्हें नहीं मिलेगी। इसमें शक नहीं कि अन्य कैदियोंकी रिहाईके लिए आन्दोलन किसी-न-किसी रूपमें अब भी चलाया ही जायेगा । परन्तु इस बातकी पूरी आशंका है कि वह आन्दोलन उतना सशक्त नहीं होगा । भारतीयोंका स्वभाव छोटी-छोटी दयाके लिए भी कृतज्ञता अनुभव करनेका है । भारतीय आसानीसे सन्तुष्ट हो जाता है। और इसलिए सुभाष बाबूकी रिहाई होने से जनता दूसरे कैदियोंको कैद रखे रहनेकी बात माफ कर देगी। और वह यह भूल