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अपील : भारतीय जनता के नाम

अत्याचारोंका कोई समर्थन नहीं किया जा सकता । पैसेका लोभ उन्हें एक ऐसे व्यापारकी ओर बरबस ले जा रहा है, जिसके बारेमें वे जानते हैं कि वह इस वन- प्रदेशके, दूसरी तहरसे भले उन निवासियोंके पौरुषका हरण करता है और उन्हें घोर अनैतिकता पूर्ण दिशामें जानेकी प्रेरणा देता है जिन्हें गलतीसे कालीपरज अर्थात् काले लोग कहा जाता है ।

श्री मशरूवालाने जो दुःखद कथा हमें लिख भेजी है उसके लिए तो सबसे पहले ब्रिटिश सरकार अथवा यों कहें कि भारत सरकार और बड़ौदा राज्यको जिम्मेदार मानना चाहिए। क्योंकि वे ही अपनी आबकारी आयके लिए इन सीधे-सादे लोगोंके बीच शराबकी दुकानें खोलने या चालू रखने की इजाजत देते हैं। इन बेचारोंने इस सरकारसे कभी नहीं कहा था कि हमारे यहाँ शराबकी दुकानें खुलवा दीजिए। और यदि कहा भी होता तो भी शराबकी दुकानें खुलवा देना तो और भी बड़ा गुनाह होता ठीक वैसे ही जैसे किसी छोटे बच्चेको महज इसलिए आगसे खेलनेकी इजाजत देना क्योंकि वह खेलना चाहता था। परन्तु एक सुधारक कार्य शुरू करने के पहले उपदेश देने और खरी तुलापर तौलकर दोषका बँटवारा करनेके लिए नहीं रुकता । जहाँ कहीं जब भी उसे मौका मिलता है, वह अपना सुधार कार्य शुरू कर देता है। और अब चूँकि भ्रष्टाचारकी बात सबके सामने स्पष्ट रूपसे रख दी गई है, पारसी सुधारकों को चाहिए कि वे इन अनैतिक लतोंमें पड़े हुए लोगों के पास जायें और यदि वे शराब का व्यापार करने से उन्हें न रोक सकें तो भी कमसे-कम उनके विवेक और सम्मानकी भावनाकी दुहाई देकर उन्हें इन सीधी-सादी गरीब निर्दोष रानीपरज स्त्रियोंकी आबरू लेनेसे तो जरूर रोकें ।

हमारे देशपर जो यह ताना कसा जाता है कि हम भारतीय अपनी स्त्रियोंके सम्मानकी बहुत कम कद्र करते हैं, वह दुर्भाग्यसे बहुत कुछ सही ताना है। झूठे देशाभिमानवश इस तरहकी दलील द्वारा बचाव करनेकी कोशिशसे काम नहीं चल सकता कि यह तो होता ही है या तू भी तो ऐसा ही है। दूसरे, श्री किशोरलाल मशरूवाला द्वारा उल्लिखित अनैतिक कार्योंके साथ हमें स्त्री-पुरुष विषयक अनीतिवाले उस प्रश्नको नहीं मिला देना चाहिए जिसमें एक ही वर्गके कुमार्गी स्त्री-पुरुष अपनी मर्जीसे बेलगाम व्यभिचार करते हैं।

पहले प्रकारकी अनैतिकता बुरी जरूर है और मानव जातिको बेहद नुकसान पहुँचा रही है। परन्तु इन शराबके ठेकेदार पारसियों द्वारा जो पाप किये जा रहे हैं, वे अपेक्षाकृत कहीं अधिक बुरे हैं। और परमात्माको धन्यवाद है कि अभीतक फैशनेबल समाजने इसे उचित नहीं ठहराया है। श्री किशोरलाल मशरूवालाने जो उदाहरण दिये हैं, उनमें वे शराबके ठेकेदार उनके संरक्षकोंकी हैसियतमें हैं। और यह अत्यन्त असहनीय बात है कि ये लोग उन अनपढ़ और अबूझ स्त्रियोंको, जो उनके पास रहती हैं, फुसला या ललचाकर उनके द्वारा अपनी पाप-वासनाकी तृप्ति करते हैं। इन तथाकथित ऊँची श्रेणीके लोगोंकी अपने सम्पर्कमें या मातहती में रहनेवाली नासमझ बहनोंकी आबरूके प्रति इस तरहकी उपेक्षाके विरुद्ध आलोचना ठीक ही