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पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

हैं। छपाई रँगाईकी प्रक्रियाओं द्वारा खादीको अधिक आकर्षक बनाकर खादीको बढ़ावा देनेके खयालसे उन्होंने खादीको सब करोंसे मुक्त कर दिया है। इस प्रशंसनीय कार्यके लिए मैं जावरा राज्यको बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि अन्य राज्य भी इस महान् और दिन-ब-दिन प्रगति कर रहे राष्ट्रीय उद्यमके प्रति, जिसमें भारतके भूखों मरनेवाले करोड़ों लोगोंके लिए बहुत बड़ा आर्थिक सहारा बननेकी सम्भावना निहित है, अनुग्रहयुक्त व्यवहार करेंगे ।

विवेकानन्द और कताई

एक पत्र लेखकने मेरे पास अमेरिकी प्रश्नकर्त्ताओंके उत्तरमें विवेकानन्द द्वारा दिए गए उत्तरोंमें से कुछ दिलचस्प उद्धरण भेजे हैं। कताईसे सम्बन्धित एक अंश नीचे उद्धृत किया जाता है :

भारतके ग्रामीण जीवनके विषय में भाषण देते हुए वे बोले : “कहीं-कहीं भारतकी सामान्य ग्रामीण लड़की अपने चरखेपर कातते हुए कहती है "मुझसे द्वैतकी बात मत कहो, मेरा चरखा तो कहता है सोऽहम् सोऽहम् -- वही मैं हूँ, वही मैं हूँ! " इन यन्त्रों और विज्ञानसे क्या फायदा ? उनका तो केवल यही परिणाम हुआ है कि वे ज्ञानका प्रसार करते हैं। आपने आवश्यकताओंके सवालको करने के बजाय उसे और भी मुश्किल बना दिया है। यन्त्र गरीबीका प्रश्न सुलझाते नहीं हैं वे तो जीवन निर्वाहके लिए संघर्षको बढ़ाते ही हैं और परस्परको होड़ तीव्र हो जाती है। प्रत्येक चीजकी कीमत इस सिद्धान्तके अनुसार आँकी जानी चाहिए कि वह वस्तु परमात्माके स्वरूपको कहाँतक व्यक्त करती है।
[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २६-५-१९२७

३८६. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

नन्दी हिल्स
२६ मई, १९२७


प्रिय सतीशबाबू,

मुझे आपका पत्र और क्षितीशबाबूका भी एक पत्र मिला । आप 'यंग इंडिया' में मेरी टिप्पणी [१] पहले ही देख चुके हैं। जमनालालजीने, यहाँ रहते हुए जब मुझसे कहा कि मैं 'यंग इंडिया' में नये प्रबन्धके बारेमें एक अनुच्छेद लिख दूं, तो मैं यह समझा था कि परिषदके सब सदस्य इससे सहमत हो गये हैं। मूल विचार तो मेरे

पूरी तरह इस्तीफा दे देनेका था। जो प्रस्ताव अब पास हो चुका है वह मध्यमार्गीय है। मैंने सोचा कि मेरा संघके प्रधानपदसे हट जाना बहुत ही उतावलीका कार्य होगा और इससे हमारे उद्देश्यको क्षति पहुँच सकती है। मेरे स्वास्थ्यकी दृष्टिसे भी इसका औचित्य नहीं था। परन्तु मैंने सोचा कि मुझे दैनिक कार्यके उत्तरदायित्वसे मुक्त

  1. अ० भा० च० संघके सम्बध में; देखिए पिछला शीर्षक। ३३-२६