पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/४४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करने एवं मेरे बिना परिषदके आगे बढ़नेका विचार बहुत अच्छा है। मेरी राय और पथ-प्रदर्शनकी जब कभी आवश्यकता होगी, वह तो मिलता ही रहेगा।

मैं खुद तो यही मानता हूँ कि दौरेका मेरे अकस्मात् बीमार पड़ जाने से कोई सम्बन्ध नहीं था। खूब जुटकर काममें लग जाना इसका कारण था, और वह मैंने स्वयं स्वीकार किया था। किसीने मुझे बाध्य नहीं किया था कि मैं तड़ित गतिसे दौरा लगाऊँ। मैंने अपने सहयोगियोंको यह सोचनेकी गुंजाइश दी और स्वयं भी मेरा यही ख्याल था कि मेरा शरीर लादे गये भारको किसी तरह सहन कर लेगा। क्या आप जानते हैं कि यह कष्ट कठिन परीक्षाके बिलकुल अन्तिम दिन ही एकाएक आ पड़ा? क्योंकि महाराष्ट्रका दौरा समाप्त करनेके बाद मेरा विचार नया अध्याय आरम्भ करनेका था; और मैंने उपयुक्त सूचना [१]राजगोपालाचारीको दे रखी थी कि मैं अब वैसी उतावली नहीं करूंगा। मैंने सोच रखा था कि बाकीका दौरा सालभर में सुविधापूर्वक समाप्त करूँगा । यदि यह संकट न आ पड़ता, तो मैं गवित होकर सोच कि अपने शरीरपर में जितना चाहूँ बोझ डाल सकता हूँ । प्रकृतिने बदला लिया और इतनी नरमीसे कि जैसा डा० वेन्लेसने कहा है 'यह प्रकृतिकी प्रथम और बहुत हदतक एक कठोर चेतावनी है।' डा० वेन्लेस सोचते हैं, बहुतसे दूसरे डाक्टर तथा मैं स्वयं भी सोचता हूँ कि एकाएक जो शक्ति क्षीण हो गई उसे उपयुक्त परिमाणमें फिरसे प्राप्त कर लेनेके बाद, जो कि सम्भव भी है, मैं हलका दौरा भी कर सकता हूँ । डाक्टर सोचते हैं कि शायद इससे कुछ लाभ ही हो । परन्तु इसके साथ यह जरूरी है कि आराम प्रतिदिन करना ही चाहिए। अधिक उतावली नहीं करनी चाहिए। अधिक कोलाहल न हो । निश्चित समय एवं नियमके अनुसार काम करनेकी पाबन्दी न हो । दिनभरमें केवल एक ही सभामें शामिल होऊँ, और उसमें भी बहुत ज्यादा न बोलूं-- एवं इसी तरहकी अन्य बातोंको ध्यानमें रखा जाये। मैं अपने मनको जीवनकी इस नई विधाके अनुकूल ढालना चाहता हूँ। यदि में सफल हो सका तो इससे मेरी आयुकी अवधि बढ़ जायेगी और मैं अच्छा खासा काम भी कर सकूँगा । इसलिए कृपया जो हो चुका है, उसकी चिन्ता मत कीजिये। बादमें में प्रतिदिनका कार्य भी फिरसे सँभाल सकूंगा।

आप मुझे प्रति सप्ताह नियमित रूपसे पत्र लिखें और बतायें कि आप तथा अन्य लोग कैसे हैं। जहांतक मेरा सम्बन्ध है, मेरी सेहत बराबर सुधर रही है। मैं शायद एक महीनेतक मद्रास प्रदेशका हलका-सा दौरा कर सकूँगा, जिससे कि वहाँ जो रकम पहले ही से इकट्ठी की जा चुकी है, उसे सँभाल लूं ।

सस्नेह,

हृदयसे आपका,
बापू

अंग्रेजी (जी० एन० १५७१) की फोटो-नकल तथा (एस० एन० १९७७७) की माइक्रोफिल्मसे ।
  1. देखिए " पत्र: च० राजगोपालाचारीको ", २१-२-१९२७ से पूर्व।