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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपने दोनों प्रकाशनोंके बारेमें जो कुछ लिखा है, वह मैंने नोट कर लिया है। हमें उनकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए। हम लोगोंको अपनी-अपनी रुचिके अनुकूल विचार रखने से नहीं रोक सकते। जैसे हम चाहते हैं कि अन्य लोग हमारे विचारोंका मान करें, वैसे ही हमें भी उन लोगोंके विचारोंका, वे हमारी रुचिके अनुकूल न हों तो भी, आदर करना चाहिए ।

हृदयसे आपका,

श्रीमती फ्रांसिस्का स्टेन्डेनथ

ग्रेज (स्टीरियामें)
ट्राउटमन्सडोर्फगेज - १

(ऑस्ट्रिया)
अंग्रेजी (एस० एन० १२४९३) की फोटो-नकलसे ।

३८९. पत्र : श्रीप्रकाशको

नन्दी हिल्स
२६ मई, १९२७


प्रिय श्रीप्रकाश,

आश्रमसे पता बदलकर भेजे गये आपके पत्रको पाकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। आपका सूत मामूली ठीक है । और आप अपना नाम चरखा संघके सदस्योंमें बिना किसी आशंकाके दर्ज करा सकते हैं ।

मैं समझ सकता हूँ कि गर्मियोंके दिनों में तकलीसे परेशानी होती होगी। तो ठीक यह रहेगा कि आप यह काम तड़के ही ऐसे समय कर लिया करें जब आप धागेको कृत्रिम प्रकाशके बिना अच्छी तरह देख सकते हों। समय सुखीसे सूखी आबहवावाले स्थानपर भी इतनी नमी रहती है कि पुनियोंका तार ज्यादा अच्छी तरह निकल सके। यदि आप कताई एकान्तमें करते हों तो आप पूरी 'भगवद्गीता' या अपने किन्हीं अन्य प्रिय श्लोकोंका पाठ भी कर सकते हैं ।

आश्रमसे मेरे पास जो रु० २६५-३-० भेजे गये हैं, उनकी रसीद भेज रहा हूँ ।

मुझे प्रसन्नता है कि आपने विद्यापीठमें खद्दर पहनना और कातना अनिवार्य

कर दिया है।

आशा है कि आपने कुछ समय आश्रम में गुजारनेका विचार नहीं छोड़ा होगा ।

संलग्न : १

हृदयसे आपका,


अंग्रेजी ( एस० एन० १९७७६) की माइक्रोफिल्मसे।