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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वैसी जैसी सहायताका विचार आप कर रहे हैं, उसके लिए २०० से ४०० के बीच कुछ देना होगा । यदि आप यह दलील दें कि अगर केवल एक ही आदमी लेना हो, तो वह तनख्वाह भी मितव्ययता होगी, तो मैं आपसे पूरी तरह सहमत होऊँगा । बहरहाल, अनुभव बताता है कि आप ऐसे आदमीकी सेवाओंको तबतक बरकरार नहीं रख सकते जबतक कि आप उसे मालिककी तरह मनमौजी बननेकी एवं हर तरहसे अपनी शर्तें मंजूर करवाते रहनेकी अनुज्ञा देनेको तैयार नहीं। इस तरह जिसे आन्दोलनमें श्रद्धा न हो; जो खादी पहननेसे घृणा करता हो; और जिसे कामपर जमकर बैठने से पहले पालिश किये हुए फर्नीचरकी जरूरत हो, ऐसे योग्य आशुलिपिकको रखना बेकार होगा। जहांतक मैं समझ सकता हूँ इस तरहके व्यवसायमें लगे अच्छे लोग जितना अधिक पारिश्रमिक माँगते हैं, उतना कताई आन्दोलन कभी नहीं दे सकता । क्या आपको मालूम है कि यदि हम खादी-सेवामें एक भी व्यक्तिको अधिक वेतन दें तो सभी श्रेणीके लोगों में स्वाभाविक तौरपर तुरन्त विक्षोभ भर जायेगा। और वे सब अपने तुच्छ वेतनकी तुलना उस व्यक्तिको दिये जानेवाले अधिक वेतनसे करने लगेंगे। कताई-आन्दोलनको सुचारुरूपसे चलानेके तरीकेका अभी विकास हो रहा है। यह आन्दोलन अभी परिवर्तनोंके दौरमें है। यह कह सकने अभी कुछ समय लगेगा कि इसमें स्थिरता आ गई है। यह ऐसा आन्दोलन है जिसका विकास अपने अन्दर से होना है। यह आन्दोलन शहरी जीवनके अभ्यस्त लोगोंसे सतत त्यागकी अपेक्षा करता है। इस आन्दोलनके लिए अपेक्षित पुरुषों एवं महिलाओंके वर्गको प्रशिक्षित करके इसके लिए तैयार करना है। ऐसे लोग विज्ञापनसे नहीं मिल सकते। हमारे पास कार्य-कुशल आशुलिपिक न होनेका कारण यह है कि आशुलिपिकों को प्रशिक्षण देनेका प्रयत्न कभी नहीं किया गया । उदाहरणके लिए छगनलाल, महादेव, कृष्णदास, प्यारेलाल और बहुत से दूसरे ऐसे लोगोंको, जिनके नाम में गिना सकता हूँ, उच्चकोटिके आशु- लिपिक बनाया जा सकता है। परन्तु ऐसा करना उपयोगी नहीं समझा गया । ऐसा करनेका मतलब तो पैसेकी जगह रुपया खर्च करने जैसी बात होगी। इसलिए हमें यह आशा करते हुए कि यदि वे आन्दोलनके भावसे आत्मसात् कर लेंगे, तो जिस काममें वे लगे हुए हैं, उसमें उच्चकोटिकी निपुणता प्राप्त कर लेंगे, हम बहुत ही घटिया किस्मके आशुलिपिकोंसे ही काम चला रहे हैं। मैंने यह लम्बी-चौड़ी दलील दी है; और इस दलीलको अटपटे ढंगसे पेश किया है। मैंने आन्दोलनके सम्बन्धमें इस विचारको लिखित रूपमें पहली बार प्रस्तुत किया है, क्योंकि में इस बातके लिए उत्सुक हूँ कि चूंकि आप कताई-आन्दोलनकी भावनामें सराबोर हैं; इसलिए मेरे मनमें जो कुछ है, वह सब आप समझ लें और मुझे अपनी आलोचना द्वारा लाभ पहुँचाएँ। जैसा कि मुझे सन्देह है, यदि मैंने अपने विचारोंको साफ ढंगसे व्यक्त नहीं किया है, तो और स्पष्टीकरणके लिए फिर मुझसे पूछनेमें संकोच मत कीजियेगा । कुछ एक पत्रोंके आदान-प्रदानसे मैं अपने विचारोंको पहलेकी अपेक्षा और अच्छी तरह व्यक्त कर सकूँगा। मैंने ऊपर जो कुछ कहा है उसके अलावा आपके मतके सम्बन्धमें और बहुत कुछ कहना है ।