पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/४४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०७
पत्र : आर० बी० ग्रेगको


'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' ठीक वैसे ही नहीं हैं जैसा मैं चाहता हूँ, इसके कारण हैं, जिनपर चर्चा करनेकी इस समय आवश्यकता नहीं है। कुछ एक कारण तो ऐसे हैं जिनका निवारण किया जा सकता है और कुछ एक अनिवार्य हैं। आशा है कि मैं उन कारणोंका निराकरण कर लूंगा जिनका निवारण किया जा सकता है। मुझे विटामिनोंके सम्बन्धमें लिखी पुस्तक मिल गई है। जैसे ही यह पुस्तक मुझे मिली, मैंने इसे पढ़ डाला। पुस्तक अच्छी है। परन्तु इससे तसल्ली नहीं हुई। जहाँतक मैं समझ पाया हूँ, विटामिनोंसे सम्बन्धित विषयपर अभी खोज होनी बाकी है। लेखकका कथन मुझे अन्तिम नहीं लगता। उन्होंने मांस-भोजनके पक्षमें जो सब गिरीवाले फलों एवं दालोंके बहिष्कारकी बात कही है वह प्रकृतिके विरुद्ध बैठती है, और मैंने शाकाहारसे सम्बन्धित साहित्यमें जो कुछ पढ़ा है, उससे बिलकुल मेल नहीं खाती। जो-कुछ लेखकोंने कहा है, वह यदि विटामिनोंके सम्बन्धमें अन्तिम कथन है, तो वह शाकाहार सिद्धान्तपर बड़ी भारी चोट है। परन्तु लेखकोंके पास गिरीवाले फलों और दालोंके प्रभावके सम्बन्धमें सही निर्णयपर पहुँच सकनेके लिए सम्भवतः पर्याप्त सामग्री नहीं है। शाक-प्रोटीन - खाद्यकी गुणकारिता या गुणहीनताके बारेमें सही पर्यवेक्षण बड़े पैमानेपर केवल भारतमें ही किया जा सकता है। केवल भारतमें ही हमें जन्मजात शाकाहारी हजारोंकी संख्या में मिलते हैं। इससे पहले कि सही निष्कर्ष निकाले जायें, उन लोगोंके भोजनका एवं उनकी आदतोंका वैज्ञानिक ढंगसे पर्यालोचन एवं विश्लेषण आवश्यक है और उसके बाद भी बहुतसे और कारण हैं जैसे कि इससे पहले कि उन लोगों द्वारा खाये जानेवाले अन्नोंका मूल्यांकन किया जाये, जल- वायु, हानिकर रीति-रिवाज तथा ऐसी दूसरी चीजोंको भी ध्यानमें रखना जरूरी है। इसलिए में उस पुस्तकमें लिखी सभी बातोंको बड़ी सावधानीसे देख रहा हूँ। स्वर्गीय ए० एफ० हिल्स, लन्दनमें शाकाहार संस्थाके प्रधान थे। वह अच्छे व्यक्ति थे। मुझे नहीं मालूम कि उनको विज्ञानके सम्बन्धमें कितना ज्ञान था । परन्तु उन्होंने भोजनके सम्ब- न्धमें साहसपूर्ण अनुसन्धान किये। उन्होंने स्वयं एकके बाद एक बहुतसे प्रयोग किये। इस विषयपर जिसे उन्होंने "शक्तिदायक खाद्य" की संज्ञा दे रखी थी, कई एक लेख लिखे। उन्होंने खाद्य पदार्थोंको तीन या चार वर्गोंमें बाँटा है। एक उनके लिए जिनका धन्धा मुख्यतः शारीरिक श्रमसे सम्बन्धित था। दूसरा उनके लिए जो मुख्यतः बुद्धिजीवी थे, तीसरा उनके लिए जिनका कार्य मुख्यतः अध्यात्मसे सम्बन्धित रहता है; और चौथा उनके लिए जो अस्वस्थ दशामें रहते हैं। उनके तर्क मुझे उन दिनों बहुत जँचते थे। मुझे नहीं मालूम कि मैं उनके सभी लेखोंको यदि फिरसे पढ़े तो वे अब भी मुझे वैसे ही जँचेंगे भी या नहीं। खाद्य-पदार्थोंके मूल्योंके सम्बन्धमें चिकित्सा व्यवसायमें उन दिनों जो चर्चा चल रही थी, मैंने उसे भी बड़े ध्यानसे समझनेकी कोशिश की। मुझे मालूम है कि डाक्टरोंका एक वर्ग बड़े जोर-शोरसे सफेद पाव रोटीके पक्षमें था और दूसरा वर्ग मानता था कि सफेद पाव रोटी मृत्युकी आश्रयस्वरूप है; और भूरी पाव रोटी जीवनकी । एक “रोटी सुधार संघ" भी बना था, जिसकी कुमारी येट्स मंत्री थीं। मैं उस भद्र महिलाके निकट सम्पर्कमें आता रहता था ।