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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

परन्तु तब भी मुझे यही पता चला कि दोनों ही पक्ष अपनी बातपर दृढ़ थे। दोनों विभिन्न प्रकारकी पाव रोटियोंके विश्लेषण और आँकड़े पेश किया करते थे। निष्कर्षके लिए किसीके पास पर्याप्त सामग्री नहीं थी। क्योंकि वे ऐसे बहुतसे लोग जुटा सकते थे जो उनके पर्यवेक्षणके लिए केवल भूरी पाव रोटी और पानीपर अथवा सफेद पाव रोटी और पानीपर निर्वाह करनेके लिए तैयार थे । एक डाक्टरका दिया एक दृष्टान्त मुझे याद है । जहाँतक मुझे याद पड़ता है वह डा० एलिसन थे। उन्होंने कहा कि मैंने अपने कुत्तोंमें से एकको सफेद पाव रोटीपर एक महीनेतक रखा और वह मर गया । दूसरे कुत्तेको भूरी पाव रोटीपर रखा और वह जीवित रहा। अनिवार्य निष्कर्ष यह था कि सफेद पाव रोटी मृत्युकी आश्रयस्वरूप थी एवं भूरी पाव रोटी जीवनकी। उन्होंने यह नहीं बताया कि क्या दोनों कुत्तोंको सारा समय बन्धनमें रखा गया। न ही उन्होंने यह बताया कि क्या जब प्रयोग शुरू किया गया तो दोनों कुत्तोंकी शारीरिक शक्ति एक ही जैसी थी ? मैं यह स्वीकार करूंगा कि उन दिनों लगभग ४० वर्ष पहले, मैंने डा० एलिसनका पक्ष मान लिया था और कुत्तोंके बारेमें उनके प्रमाणको तत्काल स्वीकार कर लिया था। मैं भूरी पाव रोटीके अलावा और कुछ भी नहीं खाता था और भूरी पाव रोटीकी किस्ममें भी ज्यादातर एलिसनकी ही भूरी रोटी खाता था, क्योंकि माननीय डाक्टर एलिसन ही भूरी रोटी खानेकी आवश्यकतापर विशेष जोर दिया करते थे, वह इसलिए कि केवल उसीमें आवश्यकतानुसार वारीक पिसा हुआ गेहूँ पूरी तरहसे होता था । वह अच्छे व्यक्ति थे। मैंने उनके सारे लेख पढ़े । १९१४ में भी जब मुझे प्लूरिसी हो गई थी और जब में दूधतक लेनेसे बराबर इनकार करता रहता था, तब भी मैंने उनकी राय ली थी । सम्भवतः माननीय डाक्टर अब भी जीवित हैं। इतनेपर भी जैसे-जैसे अनुभव पक्का होता गया मैंने इस किस्मकी बहुत-सी दलीलोंको, जिनका मैंने वर्णन किया है, स्वयं नगण्य मानना शुरू कर दिया था। इस सारे ब्यौरेका निष्कर्ष यह है कि मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मैंने अपने भोजनमें, जो-कुछ मैं आपको बता चुका हूँ, उसके अलावा और कोई परिवर्तन नहीं किये हैं। मैं बिना उबाला दूध अब भी लेता हूँ। में इसमें पानी मिला लेता हूँ। उसी समय लाया गया बकरियोंका ताजा दूध उबलते पानी में डाला जाता है। उससे दूध यथेष्ट गर्म हो जाता है और क्योंकि उसमें पानी मिलाया जाता है इससे दूध हलका हो जाता है। मैं अभीतक थोड़ी-सी रोटी या घरमें पिसे गेहूँकी बनी हुई थोड़ी-सी भाखरी और एक हरी सब्जी ले रहा हूँ । पुस्तकके लेखक कहते हैं कि सोडा सब्जियोंके विटामिन नष्ट कर देता है। परन्तु बिना सोडेके सब्जियाँ नर्म नहीं होतीं। इसलिए मैंने सब्जियोंमें सोडा डालनेका निश्चय कर लिया है। सब्जीको जबतक पूरी तरह न पकाया जाये, उसे हज्म करना कठिन है। बिना पकाई हरी पातगोभी मुझे हज्म नहीं होती। आपने गौर किया होगा कि दूधमें चारोंके चारों विटामिन पाये जाते हैं। मैं जो फल ले रहा हूँ, उनमें ये विटामिन भी पाये जाते हैं। इसलिए पातगोभी या भारतीय मटरको पकाते समय सोडा मिला लेनेसे मुझे अधिक हानि नहीं होती। पालकको बिना सोडेके