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पत्र : मगनलाल गांधीको

पकानेमें कोई कठिनाई नहीं होती। इसलिए जब कभी मैं पालक लेता हूँ उसमें सोडा नहीं मिलाया जाता। मेरे स्वास्थ्यके सम्बन्धमें चिन्ताकी कोई बात नहीं है। क्योंकि ऐसा लगता है कि मैं चाहे धीरे ही सही, पर ठीक हो रहा हूँ। जबतक मैं फिरसे फल और गिरीवाले फल नहीं लेने लगता मुझे किसी खाद्य-पदार्थसे निजी तौरपर सन्तोष नहीं हो सकता ? परन्तु मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस तरहके निजी सन्तोषके बिना ही मेरा यह सांसारिक जीवन समाप्त हो जायेगा ।

हृदयसे आपका,

[ पुनश्च : ]

मुझे इस लम्बे पत्रके लिए क्षमा कर दीजियेगा। मुझे मालूम नहीं था कि यह पत्र इतना लम्बा हो जायेगा ।
अंग्रेजी (एस० एन० १२५७४) की फोटो-नकलसे ।

३९१. पत्र : मगनलाल गांधीको

नन्दी दुर्ग
चैत्र कृष्ण ११ [२७ मई, १९२७][१]


चि० मगनलाल,

रामचन्द्र के विषय में तुमने महादेवको जो लिखा है वह मैंने सुन लिया है। उसके बारेमें मुझे इस समय कुछ नहीं लिखना है। मेरा पत्र तुमने उसे दिया है इसलिए उसका असर देखना। और फिर जमनालालजी जब वहाँ आयें तब उनसे बात करके जो करना उचित मालूम हो सो करना । उसके बाद अगर ऐसी कोई बात हो जिसपर मेरा लिखना जरूरी हो तो मुझे खबर करना ।

गोविन्दजीका पत्र बहुत अच्छा है । उसे पढ़कर जो विचार मुझे सूझे वे मैंने उन्हें लिख भेजे हैं। [२]अपने जवाबकी नकल तुम्हें भेज रहा हूँ। जवाब तुम पढ़ना और नारणदासको पढ़ाना । उसने मूल पत्र न पढ़ा हो तो वह भी पढ़ाना । मेरे जवाबको पढ़कर तुम्हें कोई विचार सूझे तो मुझे लिखना। उसमें से कोई बात समझ न आये तो भी लिखना। जिस विषयमें हम विरोधी पक्षके साथ स्पर्धा नहीं करना चाहते उस विषय में तो हममें अपूर्णता होगी ही। लेकिन जहाँ हम स्पर्धा करते हैं या जिस विषयमें हम विशेषताका दावा करते हैं वहाँ हम जितनी पूर्णतातक पहुँच

सकें उतनी तक पहुँचना ही चाहिए । 'नवजीवन' में या 'यंग इंडिया' में जो सामग्री

  1. पत्रके पाठके आधारपर ।
  2. देखिए पिछला शीर्षक ।