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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

देना तुम्हें जरूरी मालूम हो वह सामग्री तुम मुझे भेज देना; यदि वह मुझे पसन्द आई, तो उसे छापनेमें कोई अड़चन नहीं होगी। जिन पुस्तकोंके बारेमें 'यंग इंडिया या 'नवजीवन' में हमेशा सूचना जानी चाहिए उनका विज्ञापन बनाकर मुझे भेज देना, मैं उसकी व्यवस्था कर दूंगा । हेनरीके बारेमें मैंने एक टिप्पणी 'यंग इंडिया' के लिए लिखी थी। परन्तु तुम्हारा और जमनालालजीका पत्र मिलनेपर उसे रोक रखा । अब उसे स्वामीके पाससे मँगवा कर देख जाना और उसमें जरूरी फेरफार करनेके बाद यदि ऐसा लगे कि उसे दिया जा सकता है, तो मुझे भेज देना और यदि ऐसा न लगे तो कुछ करने की जरूरत नहीं ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी० डब्ल्यू० ७७६७) से ।
सौजन्य : राधाबहन चौधरी

३९२. पत्र : मीराबहनको

नन्दी हिल्स
२८ मई, १९२७


चि० मीरा,

तुम्हारे दोनों पत्र मिले; तार भी मिल गया है। जवाब देने में दो दिनकी देर न हो, इसलिए में बोलकर लिखवा रहा हूँ। जहाँतक हो सके, मौनवारके सिवा खुद पत्र न लिखनेका नियम मैं नहीं तोड़ना चाहता। तुम्हारे दोनों पत्र बड़े कीमती हैं । अब मुझे आश्रमके बारेमें पहलेसे कहीं अधिक अच्छी जानकारी हो गई है। लगभग ऐसी ही जैसे मैं वहाँ खुद जाकर देख आया होऊँ। तुम्हारा वर्णन अपने ढंगका अनोखा है और उसकी उपयोगिता वालुंजकरके पत्रसे और बढ़ गई है।

तुमने अच्छा किया कि अलग-अलग दलोंके गुणोंकी तुलनामें नहीं पड़ी, मुझे पूरी आशा है कि अप्रिय तुलनाएँ सुनकर भी तुम स्थिरचित्त रहोगी। जो तुलना करते हैं वे तो ऐसा ईमानदारीसे ही करते हैं किन्तु वे यह नहीं जानते कि ऐसी तुलनाएँ करना अनुचित है। और लोग वास्तवमें जो धारणाएँ रखते हैं उन्हें सुनकर अशान्त होनेमें क्या लाभ है ?

यह भाँगका प्रयोग परेशानीकी बात है। यदि समय रहते यह व्यसन रोका न गया तो इससे वह संस्था नष्ट हो जायेगी। किन्तु तुम्हारा सुधारके लिए आग्रह न करना ठीक ही है। तुम वहाँ व्यवस्थापक या निरीक्षक बनकर सुधार करने तो नहीं गई हो। तुम तो वहाँ हिन्दीका पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने गई हो। और ऐसा करते हुए तुम वही सेवा कर सकती हो जो सम्भव और स्वीकार्य हो । अब मैं तुम्हारी हिन्दी सीखनेकी बात को लेता हूँ ।