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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


हिन्दी सीखनेमें पूरा सन्तोष न मिले तो अन्य ऐसी बहुत-सी जगहें हैं जहाँ तुम्हें हिन्दी सीखने भेजा जा सकता है।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२३१) से ।
सीजन्य : मीराबहन

३९३. पत्र : गुलजारीलाल नन्दाको

नन्दी हिल्स
२८ मई, १९२७


प्रिय गुलजारीलाल,

आपका पत्र पाकर मुझे प्रसन्नता हुई । बिस्तरपर पड़ा-पड़ा मैं आप जैसे उन बहुत-से लोगोंकी बराबर याद करता रहा हूँ जिनमें मेरी गहरी दिलचस्पी है, और जिनसे में यह अपेक्षा करता हूँ कि यदि ईश्वरने उन्हें उनके कार्यके लिए भरपूर स्वास्थ्य दिया तो वे बड़े-बड़े कार्य करेंगे । आपने विशुद्ध धार्मिक जीवनका जो विवरण दिया है, वह बिलकुल ठीक है। मुझे लेशमात्र भी सन्देह नहीं कि आन्तरिक हर्ष एवं निश्चिन्तताकी यह आनन्दमय स्थिति कठिनसे-कठिन संघर्षोंमें भी कायम रह सकनी चाहिए। इसमें किसी तरहका कोई अपवाद नहीं हो सकता । स्वाभाविक है कि इस स्थितिको बहुत ही कम लोग प्राप्त कर सकते हैं। परन्तु मुझे इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि यह स्थिति मनुष्यके लिए अप्राप्य नहीं है। इस तरहके किसी मनुष्यके होनेका कोई प्रमाण हमें इतिहास में नहीं मिलता, इससे केवल यही प्रमाणित होता है कि तत्सम्बन्धी जो भी लिखित सामग्री हमारे पास है, वह अपूर्ण मनुष्यों द्वारा तैयार की गई है और जो स्वयं अपूर्ण है, वह पूर्णताकी स्थितिको पहुँचे हुए लोगोंके जीवनका सही चित्रण नहीं कर सकता । हमारे अपने अनुभवोंके बारेमें भी यही बात कही जा सकती है। आपने जिन पूर्ण आत्माओंका वर्णन किया है उनके सम्पर्क में आनेके लिए स्वयं हमें लगभग पूर्ण होना चाहिए। चूंकि एक औसत दर्जेका आदमी उस स्थितिका चित्रण नहीं कर सकता और उसका अनुभव भी नहीं कर सकता, इसलिए आप ऐसा न समझें कि मैंने एक बेढंगी समस्या प्रस्तुत कर दी है। इस प्रकारकी आशंका करनेका मतलब यह होगा कि हमारा प्रश्न ज्योंका-त्यों अछूता ही रह गया । बात यह है कि हम यहाँ उन असाधारण मनुष्योंकी बात सोच रहे हैं जो मनुष्य तो हैं, परन्तु असाधारण हैं, और इनको खोज निकालनेके लिए निस्सन्देह असाधारण क्षमताकी जरूरत होती है। यह बात ऐसी छोटी-छोटी चीजोंके सम्बन्धमें भी सही हैं, जो प्रायः हास्यास्पद-सी