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पत्र : गुलजारीलाल नन्दाको

जान पड़ती हैं। परन्तु फिर भी जिनको कर पाना बहुत कठिन है; उदाहरण के लिए सर ज० च० बोसके आविष्कार या कोई बहुत ही उत्कृष्ट चित्र । हम सामान्य- जनोंको इन दोनों चीजोंको विश्वासके आधारपर ही मान लेना होगा। केवल कुछ- एक विशेष प्रतिभावान लोग ऐसे होंगे जिनमें उन आविष्कारों या उन चित्रोंको समझने या परखनेकी योग्यता होगी। इन चीजोंको हम धोखाधड़ी नहीं कहते और हम उनके सच अथवा श्रेष्ठ होनेकी बात केवल इसलिए स्वीकार कर लेते हैं कि हमें इनके पक्षमें दावेसे कहनेवाले बहुत लोग मिल जाते हैं। इसकी अपेक्षा अधिक स्थायी मूल्यकी वस्तुओंके, जैसे ऊँचेसे-ऊँचे प्रकारकी मानवीय पूर्णताके पक्ष में सम्भवतः इतने साक्षी नहीं मिलते। इसलिए आपने जो सीमा स्वीकार की है वह फिलहाल तो काफी काम दे सकती है, क्योंकि इस सीमाके अन्दर भी ऐसे दुःखों और कष्टोंके प्रचण्ड आक्रमणके बावजूद, जो आध्यात्मिक नवजन्मसे पूर्व हमें नष्ट कर देते, शान्त और स्थिर बने रह सकनेके लिए तथा अपनी आन्तरिक स्थितिकी प्रगतिके लिए काफी गुंजाइश है।

मुझे प्रसन्नता है कि आपने अपनी उपासना और भी तीव्र कर दी है। मुझे नहीं मालूम कि इस समय आप क्या पढ़ रहे हैं। मुझे ध्यान नहीं कि मैंने आपको यह बताया था या नहीं कि हमें ऐसी स्थिति अवश्य प्राप्त कर लेनी चाहिए जबकि हमें सान्त्वना पानेके लिए बहुत-सी पुस्तकोंकी आवश्यकता न पड़े, अपितु एक ही पुस्तकसे जो कुछ भी हम चाहते हैं, वह सब मिल जाये । अन्तमें हम जब पूर्ण समर्पण एवं अहंकारके सम्पूर्ण विलोपकी स्थितिको लेते हैं, तब एक पुस्तककी सहायता भी अनावश्यक हो जाती है। इस समय यद्यपि में बहुत-सी पुस्तकें पढ़ रहा हूँ, 'भगवद्गीता' ही उत्तरोत्तर मेरी एकमात्र और अचूक पथ-प्रदर्शक बनती जा रही है। मेरे लिये वही एक ऐसा सन्दर्भ-कोष है, जिसमें मुझे सारे दुःख, सारी परेशानियाँ और सब कष्ट सुन्दर समाधानों सहित मानो वर्णमालाके क्रमसे विन्यस्त मिलते हैं । मेरा खयाल है कि मैंने आपको यह जरूर बताया था कि 'भगवद्गीता 'के जो अनुवाद मेरी नजरमें पड़े हैं, उनमें से 'सांग सैलेशियल' सर्वोत्तम है। परन्तु यदि आप संस्कृत नहीं जानते तो मैं समझता हूँ कि 'भगवद्गीता' समझने लायक संस्कृतका ज्ञान आप आसानीसे प्राप्त कर सकते हैं। आप लगभग एक मासके भीतर ही इतनी संस्कृत सीख सकते हैं कि मूल पाठको समझ सकें। क्योंकि यद्यपि अंग्रेजी अनुवाद बढ़िया है, और यद्यपि आपको हिन्दी एवं उर्दूका भी कोई अनुवाद मिल सकता है, परन्तु अनुवाद मूलकी तुलनामें निःसन्देह कुछ भी नहीं है। यदि आप उसे मूलमें पढ़े तो आप उसके श्लोकोंको अपना नया अर्थ दे सकेंगे और उसकी नवीन व्याख्या कर सकेंगे। वह ऐतिहासिक ग्रन्थ नहीं है। किन्तु वह उसके लेखकके वास्तविक अनुभवोंका वर्णन अवश्य है। फिर, यह लेखक वास्तव में व्यास ही थे या कोई और, इस प्रश्नमें में नहीं पड़ता। और यदि यह किसी व्यक्तिके अनुभवोंका वर्णन है, तो उस अनुभवको दोहराकर उसके सत्यासत्यकी परख कर सकना हमारे बससे बाहरकी बात नहीं होनी चाहिए। में अपने जीवन में प्रायः प्रतिदिन उसकी परख कर रहा हूँ और उसे निरपवाद रूपसे