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३९६. पत्र: एम० एस० केलकरको

नन्दी हिल्स
२८ मई, १९२७

प्रिय डाक्टर,

आपका पत्र मिला । यद्यपि मैं आपको यहाँ आनेका कष्ट नहीं देना चाहता, फिर भी इतना तो निश्चय ही चाहता हूँ कि यदि हो सके, तो आप मुझसे क्या अपेक्षा करते हैं सो लिख भेजें। जहाँतक मेरे लिये सम्भव होगा मैं आपके सुझावोंको कार्यान्वित करूँगा ।

मुझे नन्दीमें साफ किया हुआ पानी नहीं मिलता। मुझे मालूम है कि हम खुद पानीको साफकर सकते हैं। परन्तु यहाँ मेरे पास उसके लिए उपयुक्त नलियाँ और बर्तन आदि नहीं हैं। जब मैं नीचे बंगलोर जाऊँगा तो वहाँ इस बातकी कोशिश करूंगा कि साफ पानी मिल सके ।

वैसे भी अभी मैं कच्चे दूधमें उबाला हुआ पानी मिलाकर पीता हूँ। यह मुझे अधिक अनुकूल बैठता है। मैं ३० औंस कच्चा दूध पीता हूँ । लगभग दो औंस आटेकी भाखरी बनती है, जिसमें थोड़ा-सा मक्खन, सोडा और नमक मिलाया जाता है। मैं एक सब्जी भी लेता हूँ, जो अच्छी तरह उबली होती है और जिसमें एक चम्मच बकरीके दूधका बना ताजा मक्खन पड़ता है। मैं सुबहके दूधमें नीमके दस बड़े पत्तोंका रस मिला लेता हूँ। मैं अच्छी तरह सोता हूँ और प्रतिदिन लगभग ४ घंटे बोलकर लिखवाता हूँ । एक घंटा लिखता हूँ और कमसे-कम एक घंटा पढ़ता हूँ। एक रोगीके लिए, जो अभी सँभल ही रहा है, इतना काम काफी है। इसके अलावा में सुबह आधा घंटा काफी तेजीसे सैर करता हूँ और आधा घंटा शामको सैर करता हूँ। रातको ९ बजे मैं सोने चला जाता हूँ और सुबह ४ बजे उठ जाता हूँ। सुबह और शामकी प्रार्थना भी इसमें शामिल कर लें। में सुबह गहरी-गहरी साँसें खींचता हूँ । मैं दिनके समय सिरपर मिट्टीकी पट्टी रखकर डेढ़ घंटा सोता हूँ। अब आप जो चाहते हों, सो सुझाव दे सकते हैं।

अब आपके बारेमें। मेरी वास्तवमें आपकी हिदायतोंपर अमल करनेके लिए बड़ी इच्छा है। पूरी-पूरी इच्छाके बावजूद, मैं आपके इलाजके प्रति विशेष उत्साह संचित नहीं कर पाया हूँ। मेरी समझमें ऐसा कहना गलत है कि वे सभी रोगी जो मैंने आपके सुपुर्द किये, कई डाक्टरोंके पास हो आये थे और डाक्टरोंने उन्हें जवाब दे दिया था। आपके पास प्रभुदास, उनके दादा, गोमतीबहन, नवीन तथा अगर मैं अपनी याददाश्तपर जोर देकर लोगोंके नाम सोचूं तो और भी बहुत-से रोगी आये हैं। अंडोंके लिए आग्रह और ज्योतिषके प्रति अतिशय पक्षपात, आपके इलाजकी दो गम्भीर त्रुटियाँ है। आपका अंडोंके लिए जो आग्रह है, उसका मैं मान करता हूँ। परन्तु अंडे