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पत्र : वसुमती पण्डितको

मेरी धार्मिक रुचिके अनुकूल नहीं बैठते। मैं ज्योतिष के प्रति आपके पक्षपातका भी आदर करता हूँ। परन्तु मैं ज्योतिषके प्रति अपनी संशयालु प्रवृत्तिसे छुटकारा नहीं पा सकता। इसलिए मैं आपकी उपलब्धियोंसे किसी सीमित रूपमें ही लाभ उठा सकता हूँ ।

मुझे नहीं मालूम कि आपने रोगोंकी चिकित्साके रूपमें आसनोंके प्रयोगके बारेमें अध्ययन किया है या नहीं। अभी हाल ही में मेरा ध्यान उन आसनोंकी ओर आकृष्ट किया गया है। परन्तु क्योंकि आपको शरीर-विज्ञानका अच्छा ज्ञान है, इसलिए में चाहूँगा कि आप, विभिन्न आसनोंके पक्षमें जो दावे किये जाते हैं उनकी शरीर-विज्ञानके आधारपर जाँच करें। क्या आपने विटामिनोंके सम्बन्धमें किये गये नवीनतम अनुसन्धानोंका अध्ययन किया है ?

हृदयसे आपका,

डा० एम० एस० केलकर

३४२, सदाशिव पेठ

पूना शहर
अंग्रेजी (एस० एन० १४१३१) की फोटो-नकलसे ।

३९७. पत्र : वसुमती पण्डितको

नन्दी दुर्ग
वैशाख कृष्ण १२ [ २८ मई, १९२७ ]

चि० वसुमती,

तुम्हारा पत्र मिला। वहाँ जो काम चल रहा है भले ही उसका कोई फल न निकल रहा हो किन्तु तुम्हारी दैनन्दिनीसे मुझे जो मिला वह तुम अपने इतने बहुतसे पत्रोंके द्वारा भी नहीं दे पायी थीं। इसलिए तुम जिस दिन मुझे पत्र लिखो, दैनन्दिनी उससे पहले दिनकी भी क्यों न हो, भेज देना। तुम रामदासको पत्र लिखती रहती हो यह अच्छा है।

मेरी तबीयत सुधरती जा रही है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी० डब्ल्यू० ४७१) से ।
सौजन्य : वसुमती पण्डित

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