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३९८. पत्र : तारा मोदीको

नन्दी दुर्ग
वैशाख कृष्ण १२ [ २८ मई, १९२७ ]

चि० तारा,

तुम्हारा पत्र मिला । सुरेन्द्र के पत्रसे मालूम हुआ कि तुम बहुत दुर्बल हो गई हो । जो शक्ति तुमने खो दी है वह तो धीरे-धीरे ही आयेगी । तुम्हें धीरज रखनेके लिए तो नहीं कहना पड़ेगा ? इसके सिवा नाथजी इस समय वहीं हैं, उनका वहाँ रहना तुम्हारे लिये तो शान्तिदायक औषधिके समान है। यह पत्र इसलिए नहीं लिख रहा हूँ कि तुम इसका जवाब दो। यह तो मैं यदि सम्भव हो तो तुम्हारी शान्तिमें किंचित् वृद्धि करनेके हेतु ही लिख रहा हूँ । जवाब लिखना हो तो रमणीकलाल लिख देगा या मुझसे कुछ कहना हो तो रमणीकलालसे कह देना । परन्तु तुम स्वयं न लिखना। यदि वहाँ ताजा और अच्छा अर्थात् शुद्ध दूध मिलता हो तो मैं अपने अनुभवसे देख रहा हूँ कि उसे उबाले बिना उबलते पानीके साथ मिलाकर पीने से वह ज्यादा अच्छी तरह हज़म होता है और यहाँके सभी डाक्टरोंसे पूछनेपर उन सबका भी यह मत है कि यदि गाय निरोग हो, थन ठीक धोये गये हों, बर्तन साफ हो और ग्वालेने अपने हाथ गर्म पानीसे धोकर दूध दुहा हो, तो यह दूध उबाले बिना ताजा पीनेसे बहुत फायदेमन्द होता है और ज्यादा अच्छी तरह हज़म होता है। उसको उबालनेसे उसमें निहित जीवनदायी तत्त्व जल जाता है ।

हमारे यहाँ तो धीमी आँचपर पकाये दूधकी खूब महिमा है। इसलिए यदि यह मिल सके तो उसका उपयोग करके देखना ।

बा आशीर्वाद भेजती है।
गुजराती (सी० डब्ल्यू० १६९६) से ।
सौजन्य : रमणीकलाल मोदी

बापूके आशीर्वाद