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३९९. पत्र : लक्ष्मीदासको

२८ मई, १९२७

भाई लक्ष्मीदास,

तुम्हारा पत्र मिला। मैंने भाई जेठालालका पत्र पढ़ लिया है। हम रियासतोंमें खादीका काम कर तो रहे हैं किन्तु मुझे हमेशा यह डर रहा है कि जब खादीका असर विदेशी कपड़ेपर कारगर रूपसे पड़ने लगेगा उस समय उसपर ऊपर, नीचे, दायें, बायें दसों दिशाओंसे हमला होनेकी सम्भावना है। और जब यह हमला शुरू होगा तब हम रियासतोंमें अपना काम कर सकेंगे या नहीं इस सम्बन्धमें मुझे शंका है। यदि हमारी तपश्चर्या गहरी और व्यापक होगी तो शायद इस हमलेसे बच जायेंगे। अब यह प्रश्न स्वभावतः उठता है कि इस बीचकी अवधिमें हम रियासतोंमें अपना काम किस प्रकार चलायें । मेरी अन्तरात्मा तो यही कहती है कि अपमानपूर्ण शर्ते स्वीकार करने से तो हमें साफ इनकार कर देना चाहिए। हम उन्हें ऐसी कोई बात लिखकर कैसे दे सकते हैं, जिससे पथिक और रामनारायणकी अवगणना होती हो। हम उन्हें विनयपूर्वक यह कहें और समझायें कि हम आपके राज्यमें सिर्फ खादीका काम करना चाहते हैं। - वह भी आर्थिक दृष्टिसे। आपकी राजनीतिमें तनिक भी भाग लेनेकी हमारी इच्छा नहीं है। आप चाहें तो इस विषयमें हम लिखकर देनेको तैयार हैं। खादीका काम भी हम आपके राज्य में केवल आर्थिक दृष्टिसे ही करना चाहते हैं। पर आप इसका अर्थ यह न लगायें कि आपके राज्यके बाहर भी हम राजनीतिसे कोई सम्बन्ध नहीं रखेंगे अथवा उसके विषयमें हमारे अपने कोई विचार नहीं हैं। पथिक आदिके साथ हमारा राजनैतिक सम्बन्ध नहीं है। पर हम उनकी किसी प्रकार भी अवगणना नहीं करना चाहते और हम उन्हें देशद्रोही भी नहीं मानते। किन्तु उनके साथ आपके व्यवहारमें उनकी किसी भी तरहकी हानिका कारण हम नहीं बनना चाहते। मुझे लगता है कि इस प्रकारकी कोई बात हमें निडरतासे कह देनी चाहिए। यदि हम ऐसा नहीं करते तो खादीमें जो शक्ति है वह जाती रहेगी। सरकार हमारे हाथसे खादीका काम लेकर अपने नौकरोंकी मार्फत मनमाने ढंगसे खादीका प्रचार करे तो फिर हम खादीमें उस शक्तिका आरोपण नहीं कर सकेंगे जो हम उसमें आज मानते हैं। मतलब यह कि खादीके लिए हम अनेक प्रकारके अपमान सहनेके लिए तैयार रहें। अपना व्यक्तिगत अपमान भी सहन कर लें किन्तु सिद्धान्तका अपमान हो तो उस स्थितिमें खादीका काम भी नहीं किया जा सकता। सच तो यह है कि इस किस्मकी शर्तोंकी अधीनता स्वीकार करके खादीका काम किया ही नहीं जा सकता। तुम शायद नहीं जानते होगे कि चरखा संघको रजिस्टर करानेका प्रयत्न किया गया था। चरखा संघ कांग्रेसका एक स्वतन्त्र अंग है और यदि उसकी इच्छा हो तो वह कांग्रेससे अलग हो सकता है। अधिकारियोंने उसे इस शर्तपर रजिस्टर करना स्वीकार किया कि वह कांग्रेसके साथ अपना यह आध्यात्मिक सम्बन्ध भी तोड़