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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दे। हमने चरखा संघको रजिस्टर करनेका इरादा छोड़ दिया और कांग्रेससे अपना यह सम्बन्ध तोड़ने से इनकार कर दिया। यह तो पाँच हजार फुटकी ऊँचाईपर बैठा-बैठा लिखा रहा हूँ। इसलिए इसे अच्छी तरह ठोक-बजाकर देख लेना और तब जो मूल्य ठहरे वही मूल्य इसे देना । तुम इसपर अमल करो, मैंने इसे इस इरादेसे नहीं लिखाया है। तुम्हें अपना कोई मार्ग सोचने में सहायता मिल सके इस विचारसे ही लिखाया है। इस सवालपर जमनालालजीसे मेरी थोड़ी-बहुत बात हुई है। वे जल्दी आश्रममें आनेवाले हैं। उस समय तुम उनसे मिल लेना । और तुम सब अपनी समझके अनुसार निर्णय कर लेना । आखिर यह ठीक ही तो कहा गया है "सेठकी सीख दरवाजेतक ही चलती है " ।

[ गुजरातीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

४००. दलितोंके लिए सराहनीय दान

श्री वल्लभभाई तारसे सूचित करते हैं कि एक उदार सज्जनने दलित जातियों की सेवाके लिए ५०,००० रुपये दान दिये हैं और एक दूसरे सज्जनने २५,००० रुपये । अखबारोंसे मालूम हुआ है कि पहले सज्जन श्री मनसुखलाल छगनलाल हैं। लगता है कि दूसरे सज्जनने अपना नाम देना उचित नहीं समझा है। मैं इन दोनों सज्जनोंको बधाई देता हूँ। मेरा यह विश्वास दिन-प्रतिदिन बढ़ता जाता है कि ऐसा विचारपूर्वक दिया हुआ दान ही सच्चा धार्मिक दान है। यह एक शुभ चिह्न है कि धार्मिक दान करनेकी वृत्ति हमारे समाजमें अभीतक पर्याप्त रूपमें मौजूद है; पर धर्म क्या है, इसे हम शायद ही जानते हैं। मैं कई बार कह चुका हूँ कि आजकल धर्मके नामपर प्राय: अधर्म हो रहा है। इसलिए हमारे सामने दो काम है -- एक ओर तो लोगोंकी धर्मभावनाका पोषण करना और दूसरी ओर उस भावनाकी अभिव्यक्तिके लिए उचित मार्ग ढूंढ़ कर बताना । केवल हेतु शुभ होनेसे स्वर्ग नहीं मिलता । अंग्रेजीमें एक कहावत है। 'नरकका रास्ता शुभ हेतुओंसे पटा हुआ है। इसमें बहुत कुछ सत्य है। कई चोर शुभ हेतुसे चोरी करते हैं। शुभ हेतुसे असत्य भाषण करनेवाले तो इस संसारमें अनेक लोग है। युधिष्ठिर तो धर्मराज थे; उनसे भी शुभ हेतुके लिए असत्य भाषण करनेकी भूल हो गई, और उसके लिए उन्हें नरक देखना पड़ा। हम देखते हैं कि शुभ हेतुसे हत्याएँतक की जाती हैं। इसलिए स्पष्ट है कि केवल शुभ हेतुसे काम नहीं चलता। शुभ हेतुके साथ-साथ शुभ कर्म होना भी जरूरी है; और वह शुभ कर्म शुभ ज्ञानसे ही हो सकता है । इसलिए उपर्युक्त दाताओंका अनुकरण करते हुए धार्मिक स्त्री-पुरुष सच्चे धार्मिक कार्योको ढूंढ़कर उनका पोषण करें तो क्या ही अच्छा हो ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २९-५-१९२७