पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/४६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४३१
पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

शास्त्री हैं। ईश्वर उन्हें वह समस्त विवेक और शक्ति दे जिसकी उन्हें दक्षिण आफ्रिका- में आवश्यकता पड़ेगी।

हृदयसे आपका,

मंत्री

इम्पीरियल इंडियन सिटिजनशिप एसोसिएशन
पेटिट बिल्डिंग
३५९, हॉर्नबी रोड

बम्बई
अंग्रेजी (एस० एन० १२३५५) की फोटो-नकलसे ।

४११. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

नन्दी हिल्स
३१ मई, १९२७

प्रिय सतीशबाबू,

आपका पत्र मिला। मुझे जो कुछ भी कहना था, कह दिया है। मैं आपका तर्क समझता हूँ, और आपके दृढ़ निश्चयकी कद्र करता हूँ। बहरहाल मैं आपको “भोजन और स्वास्थ्य" पर यह पुस्तक भेज रहा हूँ। केमिस्ट होनेके नाते आप इस पुस्तकको मुझसे ज्यादा अच्छी तरह समझ सकते हैं। मैं निजी तौरपर लेखकके बहुतसे निर्णयोंसे असहमत हूँ। मेरी असहमति पूर्वाग्रहपर आधारित है। मैं उनकी आधारभूत सामग्रीपर साक्ष्यकी कमीके कारण आक्षेप करता हूँ। परन्तु अपनी असह- भतिके समर्थनमें मेरे पास कोई सामग्री नहीं है। मैं विधवाओंकी अपेक्षाकृत स्वस्थ दशाके बारेमें जानता हूँ ।

जहाँतक अखिलका सम्बन्ध है, उसे कभी कलकत्ता जानेकी आवश्यकता नहीं है। यदि हेमप्रभादेवी आश्रम में प्रसन्न रह सके, तो वह वहाँ निखिलके साथ रह सकती है और वहाँ उसके स्वास्थ्यकी देखभाल कर सकती है या वह पटनामें अथवा वर्धामें अपने आवासका प्रबन्ध करके रह सकती है।

मुझे मद्रास तो जाना ही है। मैं वास्तव में अन्य प्रान्तोंका दौरा भी करना चाहूँगा - वशर्ते कि यह कार्य धीरे-धीरे और आरामसे हो सके, जिससे विश्रामके लिए पर्याप्त गुंजाइश रहे, और दिनमें या प्रति दो दिनोंमें एकसे ज्यादा सभा न हो । यदि मैं किसी तरह ऐसी व्यवस्था कर भी सकूँ, तो भी मद्रास न जाना तो बड़ा भारी अपराध होगा। क्योंकि वहाँ पहले ही लगभग तीन लाख रुपये इकट्ठे किये जा चुके हैं और यों ही रुके पड़े हैं। जबतक मैं इस रकमको लेनेके लिए स्वयं उपस्थित नहीं होता, लोग इसे देना नहीं चाहेंगे। इसलिए मैं विश्रामके साथ-साथ कार्य भी कर सकता हूँ। जुलाईमें मद्रास प्रान्तमें काफी ठण्डक हो जाती है ।