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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सारा जूनका महीना विश्राम करूंगा। मैसूरका दौरा अधिक सुविधाजनक रहेगा, क्योंकि मैसूर अधिक ऊँचे धरातलपर है। यह समुद्रतलसे ३००० फुटकी ऊँचाईपर पठारका प्रदेश है। यहाँकी जलवायु वर्षके इस समय बड़ी सुहावनी रहती है। मद्रास प्रान्तके कुछ अन्य भाग ऐसे भी हैं, जो काफी ठण्डे रहते हैं। कर्नाटकका मौसम जूनके बाद बहुत ही बढ़िया होता है। इसलिए आपको किसी प्रकारकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। जैसे-जैसे दौरेका कार्यक्रम आगे बढ़ता जायेगा, में सावधानीसे जाँच करता रहूँगा। इससे ज्यादा और क्या हो सकता है कि सदा अनुकम्पाशील और सदा सजग रहनेवाली प्रकृति किसी भी प्रच्छन्न संकटकी चेतावनी समय रहते मुझे दे देगी। और तब सारी असाधारण सतर्कताके बावजूद वह एक दिन अपना दूत भेज देगी; जो रातके चोरकी तरह चुपकेसे सबकी नजर बचाकर ऐसी खुराक देगा जो मुझे चिर निद्रामें सुला देगी।

आपका,
बापू

सतीशचन्द्र दासगुप्त

होम विला
गिरिडीह

(बिहार)
अंग्रेजी (जी० एन० १५७२) की फोटो-नकलसे ।

४१२. पत्र : सी० विजयराघवाचारियरको

नन्दी हिल्स
३१ मई, १९२७

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला । या तो जमनालालजीने बहुत बड़ी गलती की है, या भेंट करनेवालोंने । यदि मैं हठ भी करने लगूं, तो भी जनके बीचमें दौरा फिरसे आरम्भ कर सकनेकी कोई सम्भावना नहीं है। डाक्टरोंकी बात रहने दीजिए। मुझे अपनेपर ही ऐसा विश्वास नहीं है। नन्दीमें रहनेसे मुझे लाभ हुआ है। परन्तु अभी बीमारीसे बच निकलनेके लिए बहुत-कुछ करना बाकी है। मैं बड़ी जल्दी थक जाता हूँ, और सुभीतेसे चल फिर भी नहीं सकता। मुझे कमसे-कम एक महीना और आराम चाहिए । में महसूस करता हूँ कि जुलाईके तीसरे हफ्तेसे पहले में बाहर निकलनेका साहस नहीं कर सकूंगा ।

राजगोपालाचारी अभी यहाँ नहीं है। वह मेरे लिये आवास खोजने एवं प्रबन्ध करने बंगलोर गये हैं। यहाँका मौसम मेरे लिये जरूरतसे ज्यादा ठण्डा हो गया