४१४. पत्र : तरुणचन्द्र सिन्हाको
नन्दी हिल्स (मैसूर राज्य)
३१ मई, १९२७
आपका पत्र मिला। फिलहाल मैं आपसे केवल इतना ही कह सकता हूँ कि आप मेरे वे पुनर्मुद्रित लेख पढ़ें, जो मैंने 'यंग इंडिया' में लिखे थे। पुनर्मुद्रित लेखोंका शीर्षक है “आत्म-संयम बनाम आत्म-निरति”। यह संग्रह अहमदाबादमें 'यंग इंडिया' के कार्यालयसे मिल सकता है। यदि आपका पुस्तक लेकर पढ़नेका विचार हो तो आप पुस्तक पढ़ चुकनेके बाद मुझसे पत्र-व्यवहार करें और बतायें कि क्या इस पुस्तकसे आपको कोई सहायता मिली है। इस दौरान मैं केवल यही प्रार्थना कर सकता हूँ कि ईश्वर आपको सही कार्य करनेके लिए सही निर्देशन एवं मानसिक शक्ति दे।
हृदयसे आपका,
डाकखाना शुशुंग
(जि० मैमनसिंह)
- अंग्रेजी (एस० एन० १४१३६) की फोटो-नकलसे ।
४१५. पत्र : बसन्तकुमार राहाको
नन्दी हिल्स
३१ मई, १९२७
प्रिय मित्र,
आपका पत्र मिला। क्योंकि मुझे मालूम नहीं है कि अंग्रेजी पत्र आपने लिखा है या किसीने आपके लिए लिख दिया है, इसलिए मैं इस पत्रका अनुवाद साथमें भेज रहा हूँ ।
यह बात नहीं है कि मैं आपके प्रस्तावसे सहमत नहीं होना चाहता। परन्तु क्योंकि मैं स्वयं गुरुकी खोजमें हूँ; अतः मुझमें किसीका गुरु बननेकी योग्यता नहीं है। आखिरकार जो किसीका गुरु बनने जा रहा है यदि वह निष्ठावान व्यक्ति है, तो उसमें आत्मविश्वास अवश्य होना चाहिए। अध्यापक और शिष्यका सम्बन्ध कठ- पुतली जैसा नहीं है, अपितु आत्माका सम्बन्ध है। इसलिए मैं आपको मात्र यह सुझाव