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४१७. पत्र : जयरामदास दौलतरामको

नन्दी हिल्स
३१ मई, १९२७

प्रिय जयरामदास,

आपका पत्र मिला। मैं आपकी कठिनाइयों एवं संघर्षोंको आज भी वैसे ही समझता हूँ जैसे मैं हमेशा समझता रहा हूँ और इसलिए जब मैं आपको कोई सहायता अथवा निर्देशन देनेमें भी असमर्थ रहा हूँ, तब भी में आपसे सहानुभूति व्यक्त करता रहा हूँ । प्रधानको लिखे अपने पत्रमें मेरा आशय है कि निजी तौरपर मेरा आपसी भयके कारण किये गये समझौतों में अधिक विश्वास नहीं है। और फिर हम-जैसे शिष्टदेशभक्त जो इकरार करते उनका जनसमुदायपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जनसमुदाय या तो क्षणिक उत्तेजनावश या शरारत करनेवालोंके निर्देशनमें कार्य करता है। हम जनताके तथाकथित प्रतिनिधि अपनी कल्पनासे हवाई किले बनाते रहते हैं। परन्तु मैं समझता हूँ कि जो इसे इस रूपमें देखता है उसके लिए काल्पनिक भी वास्तविक है और जो वास्तविक है वह उसे काल्पनिक लगता है। उस कुत्तेके लिए छाया भी वास्तविक कुत्ता जो साफ पानीमें अपना ही स्वरूप देखता है और अपनी ही परछाईपर एड़ीचोटीका पसीना एक करके भौंकते-भौंकते प्राण दे देता है । और थक जायें तो जरूर आइयेगा और कुछ दिन मेरे साथ बिताइयेगा | मैं एक सप्ताह के अन्दर-अन्दर इस पहाड़ीसे नीचे उतर आऊँगा और कमसे-कम एक महीना बंगलोरमें रहूँगा । जब व्यापारसे काफी तंग आ जायें

हृदयसे आपका,

श्रीयुत जयरामदास दौलतराम

सदस्य, विधान परिषद,

हैदराबाद (सिन्ध)
अंग्रेजी (एस० एन० १४१४०) की फोटो-नकलसे ।