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पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको

लेते हैं कि उनकी गोलियां और भस्मादिकी पुड़ीआं लेकर अच्छा रहते हैं, रह सकते हैं। और उनका आत्मविश्वास इतना जबरदस्त है कि दुर्बल होते हुए भी, बीमार होते हुए भी, कमसे कम ७५ वर्षतक जीनेका निश्चय कर लिया है। ईश्वर उस निश्चयको सफल करे । उनको ज्यादह कौन कह सकता है मैंने तो विनयके साथ जितनी सखती हो सकती है उतनी सख्ती विनोद करके लिखी है। वस्तु तो यह है कि प्रत्येक मनुष्यकी बुद्धि कर्मानुसारिणी रहती है। ऐसी बातोंमें पुरुषार्थके लिये बहुत ही कम जगह है। प्रयत्न करना कर्तव्य है ही और करना चाहिये परंतु प्रत्येक मनुष्यके लिये एक समय तो आता ही है जब सब प्रयत्न व्यर्थ बनता है और सद्भाग्य से और पुरुषार्थकी रक्षाके कारण ईश्वरने इस आखरी समयका पता किसीको नहीं दिया है। तब इस अनिवार्य होनारतके लिये हम क्यों चिंता करें? राष्ट्रका कारोबार न मालवीयजीपर निर्भर, न लालाजीपर, न मुझपर । सब निमित्तमात्र रहते हैं और मेरा तो यह भी विश्वास है कि सत्पुरुषका कार्यका सच्चा आरंभ उसके देहान्तके बाद ही होता है। शेक्सपीयरका यह कथन कि मनुष्यका भला कार्य प्रायः उसीके साथ जल जाता है और बूरा कार्य उसके पश्चात् रह जाता है ठीक नहीं है। बूराईको कभी इतना आयु नहीं रहता है। राम जिन्दा है और उसके नामसे हम पवित्र होते हैं । रावण चला गया और अपनी बुराइयोंको अपने साथ ले चला । कोई दुष्ट मनुष्य भी रावण नामका स्मरण नहीं करते हैं। रामके युगमें न जाने राम कैसा था । कविने इतना तो बता दिया है कि अपने युगमें रामपर भी आक्षेप रहा करते थे। परंतु आज रामकी सब अपूर्णता रामके शरीरके साथ भस्म हो गई, और उसका अवतारी समझकर हम पूजते हैं। और रामका राज्य आज जितना व्यापक है उतना हरगीज रामके शरीरस्थ रहते हुए नहीं था। यह बात मैं बड़ी तत्वज्ञानकी नहीं लिख रहा हूँ, न हमारे लिये शांति रखनेके कारण। परंतु मैं यह दृढ़तासे कहना ही चाहता हूं कि जिसको हम संत पुरुष मानते हैं उनके देहान्तका कुछ भी दुःख नहीं मानना चाहिये । और इतना दृढ़ विश्वास रखना चाहिये कि संत पुरुषका कार्यका सच्चा आरंभ या कहो सच्चा फल उसके देहान्तके बाद ही होता है। अपने युगमें जो उसके बड़े बड़े कार्य माने जाते हैं वह भविष्यमें होनेके परिणामके साथ केवल यत्किंचित हैं। हां, हमारा इतना कर्त्तव्य है सही कि हम हमारे ही युगमें जिनको हम संत पुरुष मानें उनकी सब साधुताका यथाशक्ति अनुकरण करें।

आपको स्वास्थ्यके लिये मेरी यह सूचना है कि यदि आपका विश्वास एलोपैथीपर नहीं है और न होना चाहिये - तो आप जर्मनीमें हुई कुन्हे और जुस्टकी संस्था है उसे देखें। वहां खुली हवा और पानीके उपचार होते हैं और उसमें से सैकड़ों लोकोंने लाभ उठाया है। लंडन और मैन्चेस्टर दोनों जगहपर वेजीटेरियन सोसाइटी है उसका भी परिचय करें। उस समाजमें हमेशा थोड़े अच्छे, गंभीर, विजयी और मध्यवर्ती मनुष्य रहते हैं। मूर्खलोक भी और मतान्ध तो देखनेमें आयेंगे ही। आपने स्टीमरपर दूध नहीं मिलनेका लिखा है। दुबारा अपने साथ होर्लिक्स मास्टेड मिल्क रखें। यह शुद्ध दूधकी भूकी है। दूधके पानीकी बाफ बनाकर जो शेष सूखा भाग