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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रह जाते हैं उसमें दूधका सब सत्व रहता है ऐसा रसायनशास्त्री लोग कहते हैं । इसका प्रयोग करके देख लीजिये ।

आपका,
मोहनदास

मूल (सी० डब्ल्यू० ६१४८) से ।
सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला


४२३. एक पत्र

[१ जून, १९२७ के पश्चात् ]

[१]

अकर्ममें भी कर्म देखनेका यह एक बहुत सादा उदाहरण है। और जिनके हाथमें चरखा है या 'गीता' है अथवा 'रामायण' है, उन्हें काम नहीं है यह नहीं कहा जा सकता । और जबतक हमें इस प्रकारका मानसिक सन्तोष नहीं होगा तबतक कुछ-न-कुछ अधीरता मनमें रहेगी ही। इससे तुम्हें छूटना है और मुझे तुमसे ऐसी आशा भी है। तुम्हारे हाथमें सहज रूपसे जो भी काम आ जाये उसे तुम बिजलीकी गतिसे पूरा करना ।

[ गुजरातीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

४२४. पत्र : मणिलाल नथुभाई दोशीको

[१ जून, १९२७ के पश्चात् ]

आपका पत्र मिला। ब्रह्मचर्यका पालन तीन प्रकारसे करना है मनसे, वाणीसे और शरीरसे। जबतक मन में विकारका लेशमात्र रहेगा तबतक विषयेन्द्रियके जाग्रत होनेकी सम्भावना रहती है। मनके विकारोंका शमन ऐसा काम नहीं, जो एक क्षणमें किया जा सके। यह तो परम पुरुषार्थ और इसलिए युगोंका काम है। जो मनुष्य इस जन्ममें विकारोंको जीत लेता है उसने इन्हें अपने इसी जन्मके प्रयत्नोंसे जीता है, ऐसा माननेकी बजाय यह मानना ज्यादा उचित होगा कि यह उसके अनेक जन्मोंके प्रयत्नोंका परिपाक है। यदि शरीरकी जाग्रत अवस्थामें ब्रह्मचर्यके भंग होनेका अवसर आये तो उस समय

आत्मघात करके शरीरका नाश करना धर्म है। इसलिए शरीरके सम्बन्धमें जितनी

  1. साधन-सूत्र में ये पत्र जून १९२७ के पत्रोंके बाद दिये गये हैं।