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४२५. गायकी रक्षा कैसे करें ?

श्रीयुत सी० वी० वैद्यकी इन टिप्पणियोंको [१] प्रकाशित करते हुए मुझे बड़ा हर्ष हो रहा है। जो लोग इन स्तम्भोंमें अनुमोदित गोरक्षाके तरीकोंपर विश्वास करते हैं, उन्हें यह जानकर प्रसन्नता होगी कि श्रीयुत सी० वी० वैद्य जैसे मान्यता प्राप्त विद्वान इन तरीकोंसे पूरी तरह सहमत हैं। विद्वान लेखकने पिंजरापोल और गोशालामें जो भेद बताया है, उससे कोई चिन्ता या कठिनाई नहीं होनी चाहिए। मेरा अपना विचार है कि जबतक अलग-अलग हिसाब-किताब रखा जाता है और निरुपयोगी तथा उपयोग में आनेवाले पशुओंको खिलाने और उनकी व्यवस्था करनेके लिए अलग तरीके अपनाये जाते हैं तबतक किसी एकका नाम दूसरेको दिया जा सकता है। श्रीयुत वैद्य द्वारा अनुमोदित नियम अथवा सरकारी सहायताकी बातसे हमारा ध्यान प्रस्तुत विषयसे नहीं हटना चाहिए, क्योंकि प्रस्तावित तरीकोंके पक्षमें और उन्हें प्रयोग में व्यावहारिक दिखाने के लिए जनमत तैयार करनेके लिए वैयक्तिक प्रयत्नोंकी बड़ी गुंजाइश है। हम निश्चय ही इतना पीछे हैं कि हमारे पास श्रीयुत वैद्य द्वारा बताई गई पद्धतिपर दुग्धालय और चर्मालय चलाने के लिए पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षित कार्यकर्ता भी नहीं हैं। मेरे पास जो आँकड़े हैं, उनके अनुसार कमसे-कम १,५००० पिंजरापोल और गोशालाएँ हैं, जिनमें बिना और अधिक चन्दा लिये केवल कुशल प्रबन्ध द्वारा इन तरीकोंकी उपयोगिताकी जाँच की जा सकती है। इन तरीकोंको अपनाकर इन संस्थाओं के प्रबन्धमें कान्तिपूर्ण परिवर्तन लाया जा सकता है और आज प्रायः निर्जीव पड़ी इन संस्थाओंमें प्राण डाले जा सकते हैं। आजकल इन पिंजरापोलों तथा गोशालाओंकी जिस रूपमें व्यवस्था की जा रही है, उससे अपनी आत्माको सन्तोष भले ही हो जाये, परन्तु गोरक्षा नहीं हो रही है। विद्वान लेखककी इस स्पष्ट उक्तिका कि वैदिक एवं ब्राह्मण कालमें गोहत्याको प्रोत्साहन दिया जाता था, पण्डित सातवलेकर , जिन्होंने पिछले ३५ वर्षोंसे अधिक वैदिक साहित्यका गम्भीर अध्ययन किया है; एवं आचार्य रामदेव द्वारा, जो यह दावा करते हैं कि वह इतिहासकार हैं और उन्होंने भारतवर्ष के प्राचीन इतिहासका आलोचनात्मक अध्ययन किया है, बड़ा खण्डन किया जायेगा। परन्तु व्यावहारिक पुरुषों एवं महिलाओंको ऐतिहासिक अंशसे कोई सरोकार नहीं है। सम्भवतः उन्हें मेरी तरह यह आशा करके सन्तोष होगा कि वैदिक कालके हमारे पूर्वजोंका ज्ञान इतनेतक ही सीमित नहीं था कि वे निरीह पशुओंको बलि चढ़ाकर श्रेष्ठ बननेकी चेष्टा करते या गोमांससे अपनी स्वाद तुष्टि करते ।

[ अंग्रेजी से ]
यंग इंडिया, २-६-१९२७
  1. यहाँ नहीं दी जा रही हैं।