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४२६. क्षणिक आनन्द या शाश्वत कल्याण ?

एक पत्रलेखकने मेरे पास अखबारकी एक कतरन भेजी है, जिसमें [अमेरिका की ] नई दुनियामें बच्चोंके अपराधोंसे सम्बन्धित लोमहर्षक घटनाओंका विवरण है। और उन तरीकोंका भी जिक्र है जिनके द्वारा लड़कियाँ अनीतिपूर्ण ढंगसे अपनी विषयवासनाकी तृप्ति करती फिरती हैं।

लिखा है कि एक चार सालके लड़केने अपनी माँको गोली मार दी, इसलिए कि उसने उस लड़केको दियासलाईकी डिब्बीके साथ खेलनेसे मना किया था। जब पुलिसने उसे डाँटा फटकारा तो वह जरा भी न सहमा । 'आप लोगोंको शूटकर दूंगा' उस लड़केने पुलिसवालोंको भी धमकी दी और लाशकी जाँच करनेवाले अधिकारीने उससे सवाल किये तब तो वह उसपर इतना उत्तेजित हो उठा कि पास पड़ा हुआ छुरा लेकर उसे भोंकनेके लिए झपटा। कहा जाता है कि अमेरिकामें शायद ही कोई ऐसा दिन बीतता हो जिस दिन किसी लड़के या लड़की द्वारा किये गये अपराधकी खबर न सुनाई देती हो । यह भी कहा जाता है कि अमेरिकाके कई कालेजोंमें तो आत्महत्याकी अथवा अपराधकी अपनी अलग समितियाँ होती हैं। और इस वर्णनका और भी भयंकर अंश यह व्यक्त करता है कि कई लड़कियाँ --उन कालेजों में पढ़नेवाली लड़कियाँ भी जिनमें केवल लड़कियाँ ही पढ़ती हैं इतनी स्वच्छन्द हो गई हैं कि वे अपनी विषयवासनाको तृप्त करनेके लिए भाग खड़ी होती हैं। आजकल अखबारवालोंको पाठकोंके लिए सनसनीखेज समाचार देनेके लिए जब ऐसी सच्ची खबरें नहीं मिलतीं जिनसे कहानियाँ गढ़ सकें, वे मनगढन्त कहानियाँ बना लेते हैं। इसलिए ऐसी खबरोंपर जैसी कि मैंने साररूपमें यहाँ दी हैं, बिना सोचे- समझे विश्वास कर लेना कठिन है। परन्तु यदि हम इन खबरोंमें काफी अत्युक्ति भी मान लें, तो भी इसमें सन्देह नहीं कि अमेरिकाके लड़के-लड़कियों में अपराधोंकी संख्या काफी बढ़ी हुई है, इस हदतक कि हमें उस सभ्यतासे, जो निःसन्देह इस बुराईके लिए जिम्मेदार है, सावधान हो जाना चाहिए । हम यह मान लेते हैं कि बच्चोंमें इन बुराइयोंके होते हुए भी पश्चिम अपने खास ढंगसे प्रगतिशील है। हम यह भी मान लेते हैं कि वहाँके समझदार लोग इस बुराईसे बेखबर नहीं हैं, बल्कि उसे दूर करनेके लिए वे दृढ़तासे प्रयत्न भी कर रहे हैं। फिर भी हमें यह तो तय ही करना होगा कि क्या हमें इस सभ्यताका आँख मूंदकर अनुकरण करना चाहिए ? [ ठीक तो यह होगा कि ] समय-समयपर पश्चिमसे हमारे पास आनेवाली इन भयंकर खबरोंको सुनकर हम जरा ठहर कर इस बातपर विचार करें और अपने आपसे पूछें कि यदि आखिरकार हम अपनी सभ्यताको ही दृढ़तापूर्वक अपनाये रहे तो क्या बेहतर नहीं होगा। और हमें [ दो संस्कृतियोंका जो ] तुलनात्मक ज्ञान सुलभ है उसके प्रकाशमें अपनी सभ्यताको जाँचकर उसमें से जानी बूझी बुराइयोंको दूर करके उसीको सुधार लेना क्या अच्छा नहीं है ? क्योंकि इसमें सन्देह नहीं है कि यदि पश्चिमके