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४२७. 'वेदमें चरखा

औंधके निवासी पण्डित सातवलेकरने १९२२ में 'वेदमें चरखा' नामक पुस्तिका लिखी थी, और जब में यरवदा जेलमें विश्राम कर रहा था, तब उस पुस्तककी एक मानार्थ प्रति मुझे दी थी। तब मैंने इस पुस्तकके पृष्ठोंपर बड़े चाव से सरसरी नजर डाली थी । परन्तु मैंने यह सोचा कि इस तथाकथित उन्नतिके युगमें यह जानकर कि वेदोंमें भी चरखेका उल्लेख है, हमको क्या लाभ होगा। प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि हमारे आदिम युगके पूर्व पुरुष जैसे बहुत-से काम अपनी कुटीरोंमें करते थे वैसे ही कातने और बुननेका काम भी किया करते थे। परन्तु आज हम यह काम नहीं करते। मैंने जल्दबाजीमें यह निर्णय किया कि पुस्तिकाका अधिक व्यावहारिक महत्त्व नहीं है और इसे एक किनारे फेंक दिया। अब जब मैं बीमारीके बिस्तरपर बीमार पड़ा हूँ, मुझे यथाशक्ति शान्तिसे अध्ययन करनेका अवसर मिला है। पण्डित सातवलेकरकी एक अन्य पुस्तकने, जिसके सम्बन्धमें मैं आगे कुछ और बताऊँगा मेरा ध्यान उनकी कृतियोंकी ओर आकृष्ट किया है। और उन्होंने इस उपर्युक्त पुस्तककी एक और प्रति मुझे कृपा करके भेजी है। मैंने देखा है कि इसका दूसरा संस्करण निकल चुका है। इस बार मैंने यह पुस्तक और भी ध्यान से पढ़ी है। मैं देखता हूँ कि लेखक द्वारा वेदोंसे उद्धृत मन्त्र केवल यही तथ्य हमारे सामने प्रस्तुत नहीं करते कि उन दिनों हमारे पूर्वज कताई एवं बुनाई करते थे अपितु सम्भवतः चरखेको नये रूपमें हमारे सम्मुख रखते हैं। यह् लेखक द्वारा उद्धृत 'ऋग्वेद' १०, ५३-६ की ऋचा है, जिसे कतैयों और बुनकरोंका मूलमन्त्र कहा जा सकता है:

तंतुं तन्वन् रजसो भानुमन्विहि ज्योतिष्मतः
पथो रक्षधिया कृतान् । अनुल्वणं वयत
जोगुवामपो मनुर्भव जनय दैव्यं जनम् ॥ ऋः १० | ५३ । ६

मैं इसका स्वतन्त्र अनुवाद यहाँ दे रहा हूँ :

धागेको कातकर और चमकदार रंग देकर बिना गाँठोंके बुन लो । और

इस तरह बुद्धिमान् लोगों द्वारा प्रशस्त पथकी रक्षा करो। और सुविचार करते हुए भावी सन्ततिको दिव्य-प्रकाशकी ओर ले चलो या (लेखकके अनुवादके अनुसार) दिव्य सन्तान उत्पन्न करो। यह सचमुच कवियोंका काम है।

यदि यह अनुवाद थोड़ा भी सही है और लेखकने अपनी पुस्तिकामें केवल अपना ही अनुवाद नहीं दिया है, अपितु ग्रिफिथका अनुवाद भी उद्धृत किया है, तो इस मन्त्रसे केवल इतना ही प्रमाणित नहीं होता कि वैदिक कालमें कताई एवं बुनाईका अस्तित्व था अपितु यह भी प्रमाणित होता है कि यह अभिजात वर्गसे लेकर निम्नतम वर्गके लोगोंका व्यवसाय था । यह विद्वान लोगों द्वारा प्रशस्त मागमें से एक था