पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/४८९

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४२९. पत्र : एम० एम० गिडवानीको

नन्दी हिल्स
२ जून, १९२७

प्रिय मित्र,

आपने 'यंग इंडिया' के लिए "द प्रेजेन्ट सिचुएशन” शीर्षकसे अपना लेख भेजा; यह आपकी कृपा है। परन्तु मुझे लगता है कि वह 'यंग इंडिया' के पाठकोंके लिए बहुत उपयोगी नहीं होगा। यह तो मानी हुई बात है कि वह लेख जन-साधारणके शिक्षणकी दिशा बतायेगा। लेकिन प्रश्न तो यह है कि शिक्षण कार्यका नेतृत्व कैसे किया जाये और उसे कौन करे । 'यंग इंडिया' का प्रकाशन या तो नई विचार- धाराओंको सामने रखनेके लिए या पहले ही स्वीकृत योजनाओं और नीतियोंको कार्यान्वित करनेके लिए व्यावहारिक तरीके प्रकाशमें लाने के लिए होता है। आपको शायद लेखकी जरूरत पड़े, इसलिए मैं उसे वापस भेज रहा हूँ ।

हृदयसे आपका,

प्रोफेसर एम० एम० गिडवानी, एम० ए०

सम्पादक

'सिन्धुदेश' कराची
अंग्रेजी (एस० एन० १४१४२) की माइक्रोफिल्मसे ।

४३०. पत्र : गोसीबहनको

नन्दी हिल्स
२ जून, १९२७

मुझे खुशी है कि आखिरकार मैंने तुमसे लिखवा लिया। मैं तुम्हारे पत्रकी प्रतीक्षा करता रहा हूँ और पेरीन द्वारा उसकी सूचना मिल जानेके बादसे तो विशेष रूपसे । मैं स्वीकारोक्तिपर भी प्रसन्न हूँ। लेकिन सही स्वीकारोक्तिकी परिणति अपने तौर-तरीके बदलनेमें होती है। परन्तु देखता हूँ कि तुम अभीतक गुजरातीकी विदुषी नहीं बन सकी हो और ऐसा लगता है कि पितामहने जो बहुत ही अच्छी कापियाँ लिखाईके लिए भेजी थीं उनका भी तुमपर कुछ असर नहीं हुआ है। लेकिन मैं इस विषयमें फैसला नहीं कर सकता। यदि करूँ तो वह तो कुछ ऐसी ही बात होगी कि आप मियाँ फजीहत दूसरेको नसीहत । स्कूलके मास्टर मेरे सामने लिखाईके लिए कापियाँ रखते थे; फिर भी मेरी लिखावट तुम्हारी लिखावटसे भी बुरी है।