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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
मैं समझा था कि ए० इ० की पुस्तक 'द इन्टरप्रेटर' नरगिसने भेजी है। वह

तुम्हारे पत्रसे पहले मिल गई थी। मेरा खयाल है कि यही पुस्तक जयजीने मुझे जब मैं यरवदामें था तब भेजी थी। लेकिन खेद है कि तब मैं पुस्तक पूरी पढ़ सकने से पहले ही रिहा कर दिया गया था। इसलिए मैं इसे पढूँगा और तुम्हें पुस्तकके सम्बन्धमें अपनी राय बताऊँगा।

हम रविवारको बंगलोर जा रहे हैं। तुम सब लोग वहाँ जरूर आओ। जुलाईमें एक खादी-प्रदर्शनी होनेवाली है। मैं उसके बारेमें मिठूबहनको लिख रहा हूँ। यदि तुम उस प्रदर्शनीके लिए आ सको तो तुम सब स्टाल सँभाल कर बंगलोरकी जनतापर एकदम पूरा-पूरा असर पैदा कर सकोगी ।

मुझमें धीरे-धीरे ताकत आती जा रही है।

तुम्हारा,

श्रीमती गोसीबहन
ओमरा हॉल, पंचगनी
अंग्रेजी (एस० एन० १४१४३) की फोटो-नकलसे ।

४३१. पत्र : मीराबहनको

नन्दी हिल्स
३ जून, १९२७

चि० मीरा,

तुम्हारा पत्र मिला। इससे मुझे दुःख और सुख दोनों हो रहे हैं; दुःख इसलिए कि फिलहाल वह आश्रम हर हालत में मेरी निगाहसे गिर गया है और सुख इसलिए कि तुम इतनी नेक होकर भी इतनी बहादुर हो। तुम खुद अपने और गंगू दोनोंके लिए ढाल बन गई। तुमने भाँग तैयार करनेकी क्रिया देखनेका निमन्त्रण स्वीकार करके शुरूमें जो गलती की वह बादकी तुम्हारी शीलयुक्त दृढ़ताको देखते हुए बड़ी नहीं रह जाती। तुम्हारा वह निमन्त्रण स्वीकार करना वैसा ही था जैसा कि एक शराब तैयार करनेवाले कारखाने में ब्रांडी तैयार होते देखनेका निमन्त्रण स्वीकार करना । लेकिन उस निमन्त्रणको स्वीकार कर लेनेमें भी तो महाराजजीको खुश करनेकी तुम्हारी तीव्र उत्कण्ठा एक कारण थी और वह भूल किसी अक्षम्य या अनुचित जिज्ञासावश नहीं हुई थी। तुम्हारा पत्र पढ़कर सबसे पहले यह विचार आया कि मैं तार देकर तुम्हें, वालुंजकर और गंगूको तत्काल आश्रम छोड़ देने को कह दूं। फिर मैंने अपने मनमें सोचा कि ऐसा करना गलत होगा, खासकर उस हालतमें जब तुमने एक भद्दी परिस्थितिमें अपनी व्युत्पन्न मति और बहादुरीका प्रमाण प्रस्तुत किया है। इसलिए मैंने तुम्हें पत्र लिखने और अपने विचार तुम्हें बताने और उन परिस्थितियों जैसा तुम्हें उचित मालूम दे, कदम उठाने देनेका फैसला किया।