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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जो कदम उठानेका सुझाव दिया है, उसके औचित्यके सम्बन्धमें पहले वालुंजकरसे बातचीत कर लो, क्योंकि वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है। देखो वह क्या कहता है । और यह भी देखो कि गंगू क्या कहती है । वह तो एक सीधे सरल तेजस्वी बच्चे जैसी है। लेकिन बहुधा बच्चोंके मुँहसे ज्ञानकी बात निकल आती है और हो सकता है कि हमारे सुविचारित निर्णयकी अपेक्षा उसका सहज विवेक कहीं अच्छा हो । इस सबके बाद ऐसा लगे कि तुम्हें फिर मेरे सामने सब बात रखनी है, तो तुम जरूर वैसा कर सकती हो । यदि तुम जमनालालजीसे मशविरा करना चाहती हो, तो तुम उन्हें भी लिख सकती हो । मैं तुम्हारा पत्र और अपने इस पत्रकी एक नकल उन्हें भेज रहा हूँ, ताकि तुम्हें अधिक कुछ न कहना पड़े। जल्दबाजीमें, उद्विग्नतामें और निश्चय ही क्रोधमें तो कुछ भी मत करना; लेकिन जो भी कदम उठाना चाहो, विनम्र प्रार्थनाके बाद और खूब सोच-विचार करनेके बाद उठाना ।

इस पत्रको बोलकर लिखा देनेके बाद मैं पूरी तरहसे हल्का और शान्त हो गया। हूँ। जब इस तरहके तजुर्वे हमें अनायास ही मिल जाते हैं, तो वे ऐसी बहुमूल्य कसौटियाँ होती हैं जो भगवान अन्तरकी सूक्ष्मतर आवाजको सुन सकनेवाले लोगोंको देता है। यदि तुम्हारे पत्रसे, जो तुम्हारा अभिप्राय था उससे अधिक अभिप्राय मैंने निकाल लिया हो और आश्रमके लोगोंके प्रति कुछ अन्याय करनेका दोषी हो गया हूँ, तो तुम मेरी भूल सुधारनेमें संकोच न करना ।

मैं आशा करता हूँ कि दो उपवासोंसे तुम्हारे शरीरपर अधिक असर नहीं पड़ा होगा। तुमसे फिर समाचार पानेकी आशा रखता हूँ। हो सकता है कि फिर उपवास करनेके अवसर आयें और मैं शायद तुम्हारे निकट न होऊँ; उस हालतमें जब तुम कमजोर और थकी-थकी महसूस करती होओ, खुद लिखनेकी कोशिश न करना; बल्कि किसी ऐसे व्यक्तिसे जो तुम्हारे पास हो, बोलकर मुझे पत्र लिखवा देना या जो भी कुछ उसे तुम बताओ मुझे उसीके मुताबिक सार लिख दिया जाये। ईश्वर सदैव तुम्हारे साथ रहे।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२३३) से ।
सौजन्य : मीराबह्न