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४३२. पत्र : व्यास रावको

नन्दी हिल्स
३ जून, १९२७

प्रिय मित्र,

मैंने आपकी पुस्तिका 'फाउन्डेशन्स ऑफ स्वराज्य' और घोषणापत्र भी पढ़ लिया है। घोषणापत्रके सम्बन्धमें तो मैं कुछ नहीं कह सकता क्योंकि मुझे तथ्य नहीं मालूम, किन्तु पुस्तिकाके सम्बन्ध में मुझे यह कहते हुए खेद होता है कि मुझे उससे बड़ी निराशा हुई। आप खुद ही अपनी भाषाकी अलंकारितामें खो गये हैं। आपने एक ऐसे आन्दोलनका अध्ययन करनेकी तकलीफ नहीं उठाई, जो अपनी सीमामें किसी भी तरहसे कम महत्त्वका नहीं है; और आपने अपनी कल्पनासे उसकी जो तस्वीर खींच रखी थी, उसे खण्डित करना शुरू कर दिया। आपने आत्मबलकी सम्भाव- नाओं अथवा चरखेकी सम्भावनाओंको समझनेकी चिन्ता नहीं की है। अन्य अध्याय भी यह साफ जाहिर करते हैं कि जिन प्रश्नोंपर आपने विचार किया है उनका अध्ययन भी आपने बहुत सतही तौरपर ही किया है। आपने मुझे लिखा है कि आपको २५ सालकी सार्वजनिक सेवाका अनुभव है। मेरे लिये यह गहरे खेदका विषय है कि आपको इतने वर्षोंके अध्ययनका इतना कम फल मिल सका। दूसरी पुस्तकके सम्बन्ध में प्रतिष्ठित समाचारपत्रोंसे जो प्रमाणपत्र आपको मिले हैं, कृपया आप उनसे अपनेको प्रशंसित न मानें । मैं दूसरी पुस्तकके बारेमें कुछ नहीं जानता। लेकिन यदि वह भी उसी मसालेपर आधारित है, जो मेरे पास आपके द्वारा छोड़ी गई पुस्तकसे साफ झलकता है, तो वह कुछ बहुत अच्छी नहीं हो सकती। किसी भाषापर अच्छा अधिकार होना बहुवा सहायक होनेकी अपेक्षा जब उस अभिव्यक्तिकी सुविधाके पीछे गहरे चिन्तन और प्रयत्नपूर्वक किये गये शोधकार्यका बल नहीं होता, बाधक बन जाता है।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

श्रीयुत के० व्यास राव

चेंगलवाराय मुडाली स्ट्रीट

ट्रिपलीकेन, मद्रास
अंग्रेजी (जी० एन० ८४) की फोटो-नकल तथा एस० एन० १४१४४ से ।