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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिया है। जर्मन सिपाही, अंग्रेज सिपाही, इत्यादिसे बढ़ कर ज्यादा पराक्रमी शूरवीर महान यौद्धे हम कहांसे पायेंगे ? उनके लिये वेश्या गमनका कानूनी प्रबन्ध किया जाता है। सैंकड़ों नहीं पण हजारों निर्दोष युवतियोंको बलिदान इन सिपाहियोंके कामाग्निमें दिया जाता है, और इस बलवान देश रक्षक क्षत्रियोंकी कोई अवज्ञा नहीं करते हैं परंतु सुशिक्षित सभ्य नरनारीयों उन लोगोंपर न्योच्छावर करते हैं क्षत्रिय इत्यादि विशेषणोंका उपयोग में स्वेच्छासे और मेरा अभिप्राय बताने के लिये नहीं करता हूं । मेरी दृष्टिसे यह कोई योद्धे नहीं हैं ! इनको मैं देश रक्षक नहीं समझता हूं। और इनकी स्तुति करनेसे धर्मकी ग्लानि होती है। परंतु आधुनिक सभ्यतामें इन लोगोंके लिये स्तुति वाचक विशेषणका ही प्रयोग होता है ।

अब आइये भारतवर्षमें। पठाण, शीख और गुर्खा यह तीन आज बलवान योद्धे माने जाते हैं। तीनोंके लिये वैश्यागमनका वही प्रबंद है जो जर्मनी इत्यादिके लिये । और साम्राज्यमें इन लोगोंका बड़ा स्थान यह तो आप जानते ही हैं। शास्त्रमें भी देखें तो क्षत्रियोंक्षका व्यभिचार क्षंतव्य माना गया है। यह सब लिखनेका तात्पर्य यह है कि आपका वेदादि शास्त्रीका इतना गहरा अभ्यास है उसका संपूर्ण फल जनताको मिले। अगर ऐसा फल मिलता है तो शास्त्रको आधुनिक अनुभव के साथ मिलाकर खूब सात्विक निरीक्षण करके शुद्ध दोहन करना आवश्यक है । और तो इसके बारे में बहुत लिखना चाहता हूं परंतु इतना ही लिखने से आप मेरे कहनेका रहस्य समझ लेंगे । शक्तिका भी बहुत संग्रह मेरे पास नहीं है। यह भी ज्यादा न लिखनेका कारण है। आपके ज्ञान और सत्यशीलताके प्रति मेरा बड़ा आदर है और इन्होंने मुझे इतना लिखनेको प्रेरा है ।

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

४३८. पत्र: अ० भा० च० संघके मन्त्रीको

नन्दी हिल्स
४ जून, १९२७

प्रिय महोदय,

आपके ३१ तारीखके पत्रके सिलसिलेमें मैं पहले ही कह चुका हूँ कि परिषदकी सम्मति मिल जानेकी पूर्वाशामें कर्नाटक एजेन्सीको रकमें दे दी जायें, बशर्ते कि जमनालालजी उसपर अपनी सम्मति दे दें।

महाराष्ट्रके सम्बन्धमें जमनालालजी जो कहते हैं, वही किया जाना चाहिए। लेकिन मेरा सुझाव है कि श्रीयुत दास्तानेको पूरी तरह सन्तोष हो जाना चाहिए कि उस निर्णयके पीछे विवेक है। जो काम पहले ही शुरू किया जा चुका है, उसे पक्का करनेमें ही बुद्धिमानी है इस बातपर वे ध्यान देंगे ।