न्यायकी अपेक्षा स्वयं अपने प्रति अधिक न्याय करेंगे। मेरी राय तो यह है कि हमारे मन्दिरोंको भगवानने त्याग दिया है; और चूँकि हम अपने देशभाइयोंके एक भागके प्रति आसुरी व्यवहार करते हैं, इसलिए भगवानने अपनेको अस्पृश्य, अनुपगम्य और अदृश्य बना लिया है। भगवान हमारे मन्दिरोंमें केवल तभी पुनः प्रवेश करेगा जब हम न केवल मन्दिर वरन् अपने हृदय भी अपने उन देशभाइयों और समान धर्मावलम्बियोंके लिए उन्मुक्त कर देंगे।
यद्यपि 'यंग इंडिया के लिए आपका यह पत्र मुझे उतने ऊँचे स्तरका नहीं लगता जैसे कि आपके मेरे पास कुछ पहले कृपापूर्वक भेजे गये पत्र में जितनी जल्दी हो सके इसे प्रकाशित करनेकी सोच रहा हूँ ।[१] इसका कारण कुछ और नहीं तो केवल मुझ पर की गई वे सदाशययुक्त और सद्भावपूर्ण करारी चोटें ही समझिए जो इस उद्देश्यसे की गई हैं कि वे चोटें मेरे सिवा औरोंपर भी लगें और कुछ असर पैदा करें।
मैं आशा करता हूँ कि मेरा सन्देश बैठकके समयतक पहुँच जायेगा। मुझे आपका पत्र कल शाम ही मिला और मैं लौटती डाकसे आपको सन्देश भेज रहा हूँ ।
हृदयसे आपका,
कारवार
- अंग्रेजी (एस० एन० १४६१७) की फोटो-नकलसे ।
४४१. पत्र : रामदास गांधीको
संघर्ष तो करना ही पड़ेगा। संघर्ष करनेमें ही पुरुषार्थ है । उसीसे हमारे व्यक्तित्वका निर्माण होता है। इसलिए निडर रहकर संघर्ष करते ही रहो। कभी हिम्मत न हारना और पूरी शक्तिसे संघर्ष करनेके बावजूद यदि शत्रु हमें धराशायी कर दे तो उस समय खिन्न न होना । फिर कमर कसकर सामना करना । यदि हमारी पराजयमें हमारा कोई हाथ न हो तो अपनी ऐसी पराजयमें लज्जित होनेका कोई कारण नहीं है। क्योंकि यह पराजय है ही नहीं। स्वप्नदोष न होने पाये इसके लिए खूब सावधान रहना चाहिए और यदि रातको किसी समय उत्तेजित हो जाओ, आलस्य किये बिना तुरन्त उठ खड़े होना चाहिये । उठकर ठण्डा पानी पी लो, ठण्डे पानीमें बैठ जाओ। गुह्येन्द्रियपर एक लोटा ठण्डा पानी उँडेल दो । बहुत
बार इधर-उधर चक्कर लगाने और रामनाम जपनेसे मन शान्त हो जाता है। इसके
- ↑ यंग इंडिया ३०-६-१९२७ में “ऑन विहाफ ऑफ अनटचेबल्स" शीर्ष कसे प्रकाशित ।