अतिरिक्त जब हम खाली बैठे हों तब भीष्मादि अखण्ड ब्रह्मचारियोंका ध्यान करें और उनके मनोबलका विचार करें। यदि ये बहुत दूरके लगें तो एन्ड्रयूज, पीयर्सन, किचिन आदिके चरित्रका विचार करें। ये भी दूर मालूम हों तो विनोबा, बालकृष्ण, सुरेन्द्र, छोटेलाल और कृष्णदास ये पाँच तो हमारे पास ही उपस्थित हैं। इनके सिवा भारतके दूसरे लोगोंके दृष्टान्त भी दिये जा सकते हैं और यदि ये ऐसा कर सकते हैं तो में भी अवश्य कर सकूँगा, ऐसी धारणा मनमें बाँध लेनी चाहिए । 'गीता' का पाठ तो यहाँ हमेशा होता रहता है; उसके अर्थपर समय-समयपर विचार करते रहने से खूब शान्ति मिल सकती है।
- [ गुजरातीसे ]
- महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
- सौजन्य : नारायण देसाई
४४२. पत्र : शारदाबहन कोटकको
४ जून, १९२७
चोरोंके प्रश्नके सम्बन्धमें तुमने ठीक लिखा है। मैंने सवाल किया उसका यह मतलब न था कि तुम फौरन उसका कोई प्रभावपूर्ण उपाय बताओ। मैंने तो सभी बहनोंको जाग्रत कर देनेकी दृष्टिसे पूछा था । पुरुषोंको स्त्रियोंकी रक्षाके अपने धर्मका पालन करते ही रहना है। किन्तु पुरुषोंका शरीर भी स्त्रियोंके शरीरकी तरह काँचकी चूड़ीके समान ही है -- फिर भले पुरुषरूपी ये चूड़ियां ज्यादा कठोर हों और ज्यादा चोट सहन कर सकती हों। लेकिन यदि यह चूड़ी टूट जाये तो उस स्थितिमें स्त्रियोंको क्या करना है, इसका विचार तो स्त्रियोंको कर ही लेना चाहिए । स्त्री-पुरुष दोनोंमें एक ही आत्मा है। उसमें जातिभेद, लिंगभेद या देशभेदसे कुछ अन्तर नहीं पड़ता। किसी वीरांगनाकी जाग्रत आत्मा, हीन पुरुषकी सुप्त आत्मासे हजार गुना अधिक तेजस्वी हो सकती है। इसलिए आत्मजागृति और आत्मबल बढ़ानेको होड़में तो, लूला, लंगड़ा, निर्वल-सबल, स्त्री-पुरुष, बूढ़ा-जवान या बालक कोई भी क्यों न हो, सब समान रूपसे भाग ले सकते हैं। घोर अँधेरी रात भी हमारे चर्म-चक्षुओंके लिए ही बाधारूप है, किन्तु यदि हमारे पास दिव्य-चक्षु हों तो उनका घोर अँधेरी रात, हथियार या मोटी लाठी क्या कर लेगी? और यदि घोर अँधेरी रातको कोई राक्षस जैसा मनुष्य राक्षसी हथियारोंसे सज्जित होकर हममें से किसीके सामने आ खड़ा हो, दूसरे सब व्यक्ति सो गये हों, मर गये हों या भाग गये हों, उस समय यदि रामनाम मुँहपर न आये तो हमारा सुबह-शाम रामनाम जपना तो व्यर्थ ही माना जायेगा । ऐसी विपत्तिके समय हमें रामनाम याद आये और मदद दे सके इसीलिए तो आलस्य युक्त रहने, थके हुए होने या आँखें नींदसे मुँदी जा रही हों उस समय भी हम सबेरे-शाम नियमसे रामनाम लेते हैं। यह सम्भव है कि काफी अभ्यासके