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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बाद यह नाम हर समय हमारे होठोंपर रहे, इतना ही नहीं किन्तु हृदयमें भी अंकित हो जाये ।

रानीपरज स्त्रियाँ हमसे ज्यादा निर्भय हैं। ये स्त्रियाँ रातको भी जहाँ चाहे चली जाती हैं वे अपनी रक्षाके लिए पुरुषोंपर निर्भर नहीं रहतीं। यह सही है कि उन्हें दूसरे प्रकारके भय रहते हैं, पर मैं तो चोर आदिके भयके विषयमें ही लिख रहा हूँ। रानीपरज स्त्रियोंको अपने शीलकी परवाह नहीं होती यह कहना भी ठीक नहीं है। जिन्हें अपने शीलकी परवाह है, वही भयभीत रहती हैं यह मानना भी उचित नहीं है। आश्रम में इस समय हम जिस भयसे त्रस्त हैं वह शीलभंगका भय नहीं है। हम दुनियामें हो रही शील भंगकी घटनाओंकी गिनती करें तो हमें मालूम होगा कि बलात्कारके उदाहरण गिने-चुने हैं। शीलभंग स्त्री और पुरुष दोनोंकी इच्छासे होता है तथा जिनका मन स्थिर है, विकार रहित है उनका शीलभंग असम्भव है। यह बात दो तरहसे सही है: एक शास्त्र कहता है, और उसका यह कथन मानने योग्य भी है कि जिसका मन पूर्णतया पवित्र है उसका मन उसके शरीरकी रक्षा करता है-- जिस प्रकार सीताके भनने उसके शरीरकी रक्षा की थी। यह तो तुम्हें मालूम होगा ही कि रावण सीताजी के साथ बलात्कार नहीं कर सका। ऐसा नहीं है कि उसमें पशु-बल न था, किन्तु वह जानता था कि यदि वह सीताजीके शरीरका मलिन स्पर्श करेगा तो उसका शरीर उसी क्षण भस्म हो जायेगा । और इसीलिए उसने अनेक उपायोंसे, प्रपंचोंसे भय दिखाकर सीताजीकी सहमति प्राप्त करनेका प्रयत्न किया। किन्तु सीताजीके मनोबलके सामने भला उसका यह प्रयत्न क्या काम आता ? दूसरे, जिस स्त्रीके मनमें विकार नहीं है उस स्त्रीपर बलात्कार हो भी जाये तो उसका शीलभंग नहीं होता। वह निर्लेप रहती है; न तो जगत उसके ऊपर कुछ कटाक्ष कर सकता है और धर्म तो उसे कोई दोष देगा ही नहीं। इसलिए पवित्र- हृदय स्त्रीको शीलभंगका भय तो कभी करना ही नहीं चाहिए; उसे तो यह विश्वास रहना चाहिए कि यदि उसका मन अचल है, तो शरीरकी पवित्रता भंग हो ही नहीं सकती। जंगलमें रहनेवाले लोग शहरवासियोंकी अपेक्षा विकारोंके वशमें कम होते हैं। उन्हें इन कारोंके वश होनेसे लिए समय ही कम मिलता है। मैं यह नहीं कहना चाहता कि वह सब सोच-समझकर पवित्र रहते हैं, पर जिस प्रकार हम सहज रूपसे निरामिषाहारी रहते हैं उसी प्रकार वे भी सहज रूपसे पवित्र रहते हैं। जंगलोंमें जहाँ-जहाँ अपवित्रता है वहाँ व्यक्तियोंका पतन दोनोंकी इच्छासे ही होता है ।:

[ गुजरातीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई