४४३. तार : ब्रिटिश भारतीय संघको'[१]
[४ जून, १९२७ या उसके पश्चात् ]
जोहानिसबर्ग
मेरी जोरदार सलाह है कि सम्मिलित कार्रवाई करें ।
गांधी
- अंग्रेजी (एस० एन० १२३५७) की फोटो-नकलसे ।
४४४. पत्र : रामेश्वरदास पोद्दारको
नन्दी दुर्ग, मैसूर [५ जून, १९२७ से पूर्व ][३]
आपका पत्र मिला । मेरा स्वास्थ्य अच्छा होता जाता है। चिताका कोई कारण नहीं है। शंकररावजीके लड़केके देहांतकी खबर ठीक दी। मैं उनको और उनकी धर्म- पत्नीको आश्वासनका पत्र भेजा है। तुम्हारी शांतिके लिए मैं क्या लिखूं ? इंद्रियोंकी निग्रह करनेके लिए ही हमारा जन्म है ऐसा माना जाए यही परम पुरुषार्थ है और उसी कारण दुःखसे साध्य है। सतत प्रयत्न करने से हमारे विकारोंको हम जीत सकते हैं। आपका मन किसी न किसी अच्छे कार्यमें रोक देना चाहिए, और इसी तरहसे शरीरको भी । मन निसंयमी रहता है तभी विकारवश हो सकता है। 'गीताजी का अभ्यास बड़े परिश्रमसे क्यों न किया जाए? और मूल ग्रंथ समझने के लिए संस्कृतका अभ्यास क्यों न किया जाए ? जब दुकानके काममें रहनेका न रहे या दुकानमें
बेकार बैठनेका रहे उस समय चर्खा या तकली क्यों न चलाई जाए? उद्यमसे मनुष्य
- ↑ ३ जून, १९२७को ए० आई० काजी द्वारा दिये गये तारके जवाबमें जो ४ जूनको मिला था। तार इस प्रकार था : "ट्रान्सवालके भारतीयोंका कांग्रेससे अलग होना हमारे उस समुदायकी एकता नष्ट करना है, जिसकी आम सभा इतवारको जोहानिसबर्गमें होनेवाली है, नितान्त आवश्यक है कि आप तत्काल ऐसे कदमके विरुद्ध संघको तार दे दें । "
- ↑ ब्रिटिश भारतीय संघका तारका पता ।
- ↑ गांधीजी नन्दी हिल्ससे नीचे बंगलोर ५ जून, १९२७ को आये थे। ३३-३०