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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्थूल पहाड़को जैसे काटता है इसी तरहसे उद्यमसे विकारके पहाड़ोंको भी अवश्य काट सकता । इसलिए सतत उद्यम कीजिए ।

बापूके आशीर्वाद

मूल (जी० एन० २०५) की फोटो-नकलसे ।

 

४४५.चरखेमें मधुर संगीत

उपर्युक्त लेख' मुझे जैसा मिला है यहाँ मैंने उसे वैसा ही छाप दिया है। भाई करसनदास चितलियाने एक विज्ञापन द्वारा चरखेपर निबन्ध आमन्त्रित किये थे; अपने इस विज्ञापन के उत्तरमें उन्हें जो लेख मिले थे, यह उन्होंमें से एक है। उन्होंने इसे विशेष अच्छा समझकर रख छोड़ा था, और पिछले वर्ष मुझे दिया था। मैंने उसे यह सोचकर रख लिया था कि किसी समय इसे छापूंगा और आज मैं उसे पाठकोंके सामने पेश कर रहा हूँ ।

यह लेख २१-९-१९२१ को लिखा गया था। वह जमाना और था और आजका जमाना और है। जमानेके जोशमें उस समय बहुत से लोग चरखेका गुणगान करते थे। इसलिए यदि 'वनवासी' की दृष्टि 'नवजीवन' पर पड़ती हो और वे इस टिप्पणीको पढ़ें, तो मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि क्या वे आज भी वही बात कह सकते हैं जो उन्होंने १९२१ में कही थी ? सन् १९२१ में जिन लोगोंको चरखा प्रिय लगता था; उन्हींको वह अब अप्रिय मालूम होता है। कहीं बनवासी भी उन्हीं लोगों में से तो नहीं हैं ? यदि ऐसा हो और वे चाहें तो अब चरखेकी निन्दा भी लिख भेजें। यदि उसकी भाषा अच्छी होगी तो मैं उसे जरूर छाप दूंगा, क्योंकि में चरखेके पक्षमें एक भी झूठे प्रमाणपत्रका संग्रह नहीं करना चाहता। यदि चरखेको टिकना होगा तो वह सिर्फ अपनी निजी शक्तिसे ही टिक सकता है। यदि उसमें अपनी शक्ति न हो तो मैं उसकी तारीफमें अनेक कविताएँ लिखवाकर छायूँ तो भी वह आगे नहीं बढ़ सकता । यदि उसमें सचमुच शक्ति होगी तो चरखा चलानेवाले किसी ग्रामीणका ग्रामीण भाषामें दिया हुआ अनुभव भी उसके समर्थनके लिए काफी होगा। और 'नवजीवन का प्रत्येक पाठक जानता है कि आज तो ग्रामीण भाषामें चरखेका समर्थन हो भी रहा है। चरखा धीरे-धीरे किन्तु बराबर, आगे बढ़ता जा रहा है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ५-६-१९२७

१. यहाँ नहीं दिया गया है। २. लेखकने उक्त लेख इसी नामसे लिखा था। Gandhi Heritage Portal