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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पुनरुद्धारकी आवश्यकता नहीं है। हाँ, उसमें सुधारोंके लिए बहुत स्थान है। परन्तु खेतीमें सुधार करना राष्ट्रीय शिक्षा शास्त्रीके बूतेके बाहरकी बात है, क्योंकि यह काम राज्यकी सहायताके बिना न तो आगे बढ़ सकता है और न सुचारु रूपसे किया जा सकता है। उसमें लाखों रुपयोंकी जरूरत है। लाखों रुपये तो प्रयोगोंमें ही लग जायेंगे । इसलिए मेरा तो निश्चित मत है कि यह कार्य जबतक स्वराज्य नहीं मिलता तबतक कदापि नहीं किया जा सकता । खेती सम्बन्धी कानून देशकी आर्थिक स्थितिके अनुकूल होना चाहिए। आज वे ऐसे नहीं हैं। किसानोंको शिक्षा देनेके लिए स्थान-स्थानपर आदर्श फार्म होने चाहिए। किन्तु आज ये फॉर्म यहाँ नहीं हैं । किसानोंको कुछ खास सुविधाएँ मिलनी जरूरी हैं; वे नहीं हैं। कई बातों में किसानोंको उनके खेतोंमें जाकर शिक्षा देनेकी व्यवस्था करनी होगी, किन्तु यह व्यवस्था भी आज नहीं की जा सकती। ये सब बातें उन जगहोंमें आज भी मौजूद हैं जहां लोकप्रिय और लोक-कल्याणकी दृष्टिसे चलाई जानेवाली सरकारें हैं, जैसे दक्षिण आफ्रिका, आस्ट्रेलिया आदिमें। इसलिए अब राष्ट्रीय शिक्षा शास्त्रीके हाथोंमें तो वही दूसरा महत्त्वका काम बचता है, जिसे नैरोबीके ये भाई स्वीकार करते हैं यानी चरखा । और चरखेको लेकर जो संस्थाएँ चलती हैं वे राष्ट्रीय शिक्षा लेनेवाले सभी युवकोंको अपने पैरोंपर खड़ा होने योग्य बना सकती हैं और सबको रोजी भी दे सकती हैं। परन्तु चरखा शास्त्रका शास्त्रीय ज्ञान उतना ही आवश्यक है जितना एक अच्छे नाईके लिए हजामत बनानेका अथवा एक पैमाइश करनेवालेके लिए जमीनोंकी नाप जोख करनेका ज्ञान । इस शिक्षाको प्राप्त करके ऐसे नवयुवक धीरे-धीरे निकल रहे हैं। और ज्यों-ज्यों खादीकी प्रवृत्ति बढ़ेगी, त्यों-त्यों अनायास राष्ट्रीय शिक्षाका क्षेत्र भी विस्तृत होगा ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ५-६-१९२७

४४७. भाषण : चिकबल्लापुरमें[१]

५ जून, १९२७

मित्रो,

मैं आपके अभिनन्दनपत्र तथा थैलीके लिए आपको धन्यवाद देता हूँ। मैं स्वागत समितिको तथा चिकबल्लापुरके लोगोंको इस बातके लिए धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने नन्दीमें मेरा निवास इतना आरामदेह बनाया। मेरी हर जरूरतको पहले ही पूरा करनेके लिए अपनी शक्तिभर खुले मनसे खर्च किया है। मैं इस दयाको कभी नहीं भूलूंगा। लेकिन मैं यह भी जरूर कहना चाहूँगा कि मैसूरमें मेरे ठहरनेका एकमात्र कारण यह है कि मैं आपको देशके सबसे ज्यादा गरीब लोगों, आपके

  1. बंगलोरके रास्तेपर।