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पत्र: गंगाधर शास्त्री जोशीको

मजदूरोंकी तरफसे अपना सन्देश देना चाहता हूँ। मैं आशा करता हूँ कि चरखेका सन्देश आपके दिलोंमें स्थायी रूपसे घर कर सकेगा। मैं जब यह सुनूंगा कि आप स्वयं अपना खद्दर तैयार करते हैं और अपनी ही बनाई खादी पहनते हैं तभी सन्तुष्ट होऊँगा। मैं आशा करता हूँ कि चिकबल्लापुरमें आपके यहाँ अस्पृश्यताका नाम भी नहीं है। मैं अस्पृश्यताको हिन्दू-धर्मपर कलंक मानता हूँ। मुझे अपने देशवासियोंके एक अंशको अस्पृश्य मानने और उनसे वैसा व्यवहार करनेके लिए हिन्दू-धर्ममें कोई शास्त्र- प्रमाण नहीं मिलता। मैं आशा करता हूँ कि आप यह बात याद रखेंगे। आपकी सारी कृपाके लिए मैं फिर एक बार आपको धन्यवाद देता हूँ।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, ६-६-१९२७

४४८. पत्र : गंगाधर शास्त्री जोशीको

कुमार पार्क
बंगलोर
५ जून, १९२७

प्रिय मित्र,

डा० गणनाथ सेन द्वारा आयुर्वेदके कुछ पारिभाषिक शब्दोंके अनुवादके सम्बन्धमें आपने उनको लिखे गये अपने पत्रकी एक नकल भेजनेकी कृपा की थी। पता नहीं डा० सेनने आपको उसका जवाब दिया भी या नहीं । चूँकि आप आयुर्वेदका गहरा अध्ययन करनेवाले व्यक्ति मालूम होते हैं, क्या आप कृपया मुझे बता सकते हैं:

(क) आयुर्वेदीय चिकित्सा किस अर्थमें एलोपैथी चिकित्सासे ज्यादा अच्छी है ?
(ख) आयुर्वेदके औषधि शास्त्रमें अथवा उसकी चिकित्सा अथवा शल्य-
चिकित्साकी किसी अन्य शाखामें क्या कुछ खास शोधकार्य हो रहा है ?
(ग) क्या आपने अथवा आयुर्वेदके किसी अन्य चिकित्सकने औंधके पण्डित
सातवलेकर द्वारा सम्पादित 'वैदिक धर्म के इसी अंकमें उद्धृत हृदयरोग, श्वेत कुष्ठ
नाशन सूक्त -- 'कुष्ठ' नाशन 'सूक्त' में दिये गये नुस्खोंके उद्देश्यकी छानबीन की
है अथवा उन नुस्खोंका परीक्षण किया है ? यदि आपके पास वह पत्रिका नहीं है,
तो मैं खुशीसे उसे आपके पास भेज सकूँगा ।

हृदयसे आपका,

डा० गंगाधर शास्त्री जोशी

तिलक महाविद्यालय

पूना
अंग्रेजी ( एस० एन० १४१४७) की फोटो-नकलसे ।