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भाषण : बंगलोरकी प्रार्थना सभामें

सिवा किसी औरसे बातकी हो ऐसा मुझे याद नहीं है। उसने चंचीके बारेमें जो लिखा है वह तो आश्चर्यमें डालनेवाला है। मैंने तुम सभी बहनोंको अपनी बेटीके समान माना है। हरिदासभाईने चंचीकी सगाईके बारेमें मुझसे काफी बात कर ली थी। उससे अधिक सयानी लड़की ढूंढ़नेपर भी कहाँ मिल सकती थी। मुझे मालूम नहीं है, पर हो सकता है कि हरिलालके मनमें विवाहकी बात रही हो। यह सही है कि मैं विवाह जल्दी करनेके पक्षमें नहीं था। किन्तु इतना भी मुझे तुम्हें नहीं लिखना चाहिए। हरिलालके आक्षेपके बारेमें मुझे अपना बचाव भी नहीं करना है। पर तुम्हारे मनमें एक क्षणके लिए भी ऐसा विचार आये कि मैंने कोई ऐसा काम किया है जिससे तुम्हारा दुख बढ़ सकता हो, तो न आने देना। इसलिए इतना लिख दिया है। तुम दोनों बहनें बहादुर हो इस कारण मैं बिलकुल निश्चिन्त हूँ। मनुको आश्रममें लाने और वहाँ रखनेका प्रबन्ध तो कर लिया है। मेरी सलाह है कि उसे तुरन्त भेज दो। यदि चि० बली हरिलालके पत्र पढ़ती रहती हो तो उसे यह पत्र भी पढ़ा देना । पर यदि तुमने उसे हरिलालके पत्र न पढ़ने देनेकी सावधानी रखी हो तो इस पत्रको पढ़ानेकी भी जरूरत नहीं। यदि उसने हरिलालके पत्र पढ़े हों तो उससे दुखी न होनेके लिए कहना ।

गुजराती (एस० एन० १२१९३) की फोटो-नकलसे ।

४५१. भाषण : बंगलोरकी प्रार्थना सभा में [१]

[५ जून, १९२७के पश्चात् ]

मैं चाहता हूँ कि आप मेरे साथ कुछ शान्ति और धीरजसे रहें। यानी, जब मैं शामको घूमनेके लिए निकलूं, आप मुझे झुण्डोंमें घेर न लें या मेरे पीछे-पीछे न चलें । मैं एक मरीज हूँ। और मेरी आवाज अभीतक मन्द है। मुझे अपना शारीरिक बल पुनः प्राप्त करना है। मैं यहाँ आराम करनेके लिए आया हूँ । अच्छा होनेपर मैसूरकी जनताकी मुझसे जो कुछ थोड़ी बहुत सेवा बन पड़ेगी, आशा है कि मैं करूँगा। इसलिए जितने आरामकी मुझे जरूरत है, उतना मुझे आप कर लेने दें और मेरे शान्तिपूर्वक घूमनेमें खलल न डालें। यह तो हुई मेरे विषयकी बात । अब आपके विषयमें यह कहूँगा कि आप सब चाहे किसी भी धर्मके अनुयायी हों, यहाँ आकर प्रार्थनामें सहर्ष शामिल हो सकते हैं। पर इसके लिए एक दो शर्तें हैं। पहली शर्त यह है कि आपको प्रार्थनाके भावसे, प्रार्थनामय हृदयसे, प्रार्थनाकी मनोवृत्ति लेकर यहां आना चाहिए। हर व्यक्ति चाहे वह हिन्दू हो, मुसलमान हो, या ईसाई अथवा अन्य किसी भी धर्मका अनुयायी हो प्रार्थनामें शामिल हो सकता है। श्लोकोंके पाठके बाद हम 'रघुपति राघव राजाराम, पतितपावन सीताराम' की धुन गाते हैं। इस धुनमें

भी वे सब लोग शामिल हो सकते हैं, जिनकी आवाज अच्छी है ताकि हमारी प्रार्थना

  1. महादेव देसाईकी “ साप्ताहिक चिट्ठी " से।