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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इतना ज्यादा लगाव है, मैं चाहता हूँ कि तुम उसे तबतक अपनी छत्रछायामें रखो जबतक इसकी जरूरत हो । कुछ और जगहोंके बारेमें भी मैं पहले ही तुम्हें लिख चुका हूँ, लेकिन मैं कोई निर्णय लेनेकी जल्दबाजी नहीं करूंगा। यदि वालुंजकर व गंगू तुम्हारे साथ न रहें तो अपना हिन्दी अध्ययन समाप्त करनेके लिए कहीं अन्यत्र जमकर रहने से पहले कुछ दिन मेरे साथ बिताना तुम्हारे लिये अच्छा हो सकता है। अब तो शायद तुममें इतना आत्मविश्वास आ गया होगा कि आश्रममें भी हिन्दी पूरी तरह सीख सको। मेरी रायमें तुम्हें जरूरत ऐसे व्यक्तिकी है जो तुमसे सिर्फ हिन्दीमें ही बातचीत करे। लेकिन मैं इस मामले में बहुत करके तो तुम्हारे मनकी बात देखकर ही कुछ फैसला करूँगा ।

तुम्हें इन दिनों अपने जीवनके सबसे मूल्यवान अनुभव हो रहे हैं। 'गीता' के छठे अध्यायके नवें श्लोकका ध्यान करो ।

समबुद्धिवाला व्यक्ति अच्छे और बुरे दोनों ही तरहके लोगोंके साथ एक जैसा व्यवहार करता है। । उनकी बुरी बातोंका पता चल जानेपर भी हमें उनसे स्नेह करना चाहिए। लेकिन स्नेह और सम-व्यवहार केवल सेवा द्वारा व्यक्त होते हैं, उसीके द्वारा उन्हें व्यक्त होना चाहिए। तुम बुरे हो, लेकिन मैं तुम्हें अब उसी तरहसे स्नेह करता हूँ, जैसे जब तुम्हें अच्छा समझते हुए करता था। संक्षेपमें जीवनका लक्ष्य ऐसी स्थिति प्राप्त लेना है। 'रॉक ऑफ एजेज क्लेफ्ट फार मी, लैट मी हाइड माइसेल्फ इन दी "

सस्नेह,

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२३४) से ।
सौजन्य : मीराबहन

४५४. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको बापू १. सुहृन्मित्रायुं दासीनमध्यस्थ द्वेष्य बन्धुषु । साधुष्वपि च पायेषु समबुद्धिविंशिष्यते ॥ कुमार पार्क बंगलोर ६ जून, १९२७ प्रिय चार्ली, यह पत्र तुम्हें शास्त्रीके दक्षिण आफ्रिका पहुँचनेतक ही मिल पायेगा । यद्यपि एक तरहसे उनके पहुँचनेपर तुमपर कामका जो भारी बोझ पड़ रहा है, वह कुछ हल्का हो जायेगा फिर भी मैं कह सकता हूँ कि प्रारम्भकी अवस्थाओंमें उनके आनेसे तुम्हारी जिम्मेदारियाँ बढ़ जायेंगी, क्योंकि तुम चाहोगे कि वे भारतीय तथा यूरोपीय दोनों ही दूषित तत्त्वोंसे बचाकर रखे जा सकें । Gandhi Heritage Portal