पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/५१३

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४७५ पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको तुम्हारा तार मिला था उसके एक अंश यानी प्रागजीसे सम्बन्धित अंशका जवाब मैं तुम्हें दे चुका हूँ। इस बार तुमने मुझे तार भेजनेमें बहुत ही शानदार किफायत की है; और चावलकी मिलों और उनसे विटामिनोंके नाशसे सम्बन्धित तुम्हारी चेतावनीपर ध्यान देकर मैंने उसके प्रति अपनी प्रशंसा व्यक्त कर ही दी है। पहले मैं तुम्हारे तारके उस अंशपर विचार करना चाहता था जिसमें शास्त्रीजी को दावतोंके खर्चके लिए मिलनेवाले भत्तोंकी चर्चा है। लेकिन मैंने तुरन्त ही यह ताड़ लिया कि यह तो तुम्हारी घबराहटमें की गई एक भूल है। अगर ऐसा कहनेसे मेरा अभिप्राय ठीक व्यक्त हो रहा है तो मेरा अभिप्राय तुम समझ ही गये हो । वह तार भगवानके भोले भगत चार्लीका नहीं था वरन् ज्यादा सोच-विचार करनेवाले उस सी० एफ० एन्ड्रयूजका था, जिसके सोच-विचारने उसके दिमागपर इतना बोझ डाल दिया था कि घबराहटके कारण उसके मनमें सभी तरहकी काल्पनिक आशंकाएँ पैदा कर दी थीं। आखिर हमने शास्त्रीको उनके चरित्र, उनकी विद्वत्ता और उनकी सादगी तथा दस्तूर दिखावेसे उनकी अरुचिके कारण ही तो दक्षिण आफ्रिकाके लिए उन्हें उपयुक्त व्यक्ति माना है। जैसे कि यदि तुम शान-शौकतवाले आदमी बन जाओ और फैशन-परस्त होटलोंमें लोगोंको दावतें आदि देकर उनके जरिये उन्हें अपनी ओर खींचना चाहो और बेहतरीन कारोंमें बैठकर घूमों-फिरो तो दक्षिण आफ्रिकामें तुम्हारा जितना ज्यादा अच्छा असर है वह सब खत्म हो जायेगा, ठीक उसी तरह मुझे पूरा विश्वास है कि यदि शास्त्री अपने लिये नहीं वरन् अपने उद्देश्य के लिए मित्र हासिल करनेके खयालसे शानदार दावतें देना शुरू कर देंगे, तो उनका सारा असर समाप्त हो जायेगा । आखिरकार क्या यह बेहतर नहीं होगा कि वे सचमुच ही एक गरीब शोषित देशके प्रतिनिधि दिखाई दें बनिस्बत इसके कि वे एक शक्तिशाली विदेशी और उस खर्चीली सरकारके कारिन्दे दिखाई दें जो अपने भारी खर्चोंके लिए करोड़ों मूक लोगोंको गरीब बनाती है। क्या सरकारका एजेन्ट होनेसे पहले उन्हें उनके भीतर जो मानव है उसका एजेंट नहीं होना चाहिए ? क्या यही ज्यादा ठीक नहीं है ? मुझे उस विवादकी याद आती है जो १८८९ या ९० में सार्वजनिक समाचार- पत्रोंमें लन्दनके बिशप व उनके महलके खर्चीले रख-रखावके सम्बन्धमें लन्दनमें चल पड़ा था। मुझे उस सनसनीकी भी याद है जो उस समय पैदा हुई थी जब बिशपने अपना हिसाब-किताब सामने रखा, जिसमें उन्होंने खर्चेकी मदमें नौकरोंका और एक जोड़ी गाड़ी आदिका खर्च भी दिखाया था, जिसका औचित्य उन्होंने यह कहकर सिद्ध किया था कि उन्हें राजाओं और लॉर्ड महोदयोंके बीच उठना बैठना होता है, और उनके जीवनको प्रभावित करना होता है। यदि मुझे ठीक याद पड़ता है, तो खर्चके इस ब्यौरेके प्रकाशनसे बिशपने अपने बचावमें जो बातें कहीं थीं, उनसे वे और भी ज्यादा उपहासास्पद बन गये थे । कल्पना कीजिए कि ईसा मसीह हीरों और रत्नोंसे जड़ी पोशाक पहनें, सोनेके थालोंमें परोसे भोजन, चुनिंदा पुरानी मदिराओं और खाद्य-पदार्थोंके साथ इस खयालसे खाते फिरें कि अपने समकालीन भोजन प्रेमियों और करोड़पतियोंको अच्छा लगे । लेकिन मुझे अब और अधिक कुछ नहीं कहना चाहिए । Gandhi Heritage Portal