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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं समझता हूँ कि तुम्हारी शिराओंको सन्तुलित बनानेके लिए और तुम्हें ताजगी देनेके लिए मैंने काफी कुछ तुम्हें लिख दिया है।

यद्यपि में स्वास्थ्य लाभकी दिशा में प्रगति करता दिखाई दे रहा हूँ, लेकिन

दिमाग अब भी कुछ कमजोर ही है और जरासे भी दबावमें विभ्रान्त हो जाता है। अस्तु में प्रभुसे प्रार्थना करता हूँ, हँसता हूँ और सब सहता हूँ। यदि इन तमाम वर्षोंमें उसने मुझे वह सब शक्ति दी जिसकी मुझे जरूरत थी, अब अगर शायद वह मुझे लाचार बेबस बनाकर मेरा अभिमान चूर करना चाहता है, तो करे !

तुम्हारा,

अंग्रेजी (एस० एन० १२३४७) की फोटो-नकलसे ।

४५५. पत्र : मणिलाल और सुशीला गांधींको बंगलोर सिटी ६ जून, १९२७ चि० मणिलाल और चि० सुशीला, तुम्हारे पत्र अभीतक तो नियमपूर्वक आ रहे हैं। इस नियमका पालन होता रहे तो अच्छा होगा। जिस स्टीमरसे शास्त्रीजी आ रहे हैं उसीसे यह पत्र भी तुम्हारे पास पहुँचेगा । 'गीता' का अनुवाद इस समय पाँच गुनी गतिसे चल रहा है। इसलिए तुम्हें खूब सामग्री मिलती रहेगी। तुम दोनोंको जो समझमें न आये वह मुझसे पूछ लेना । मेरी तबीयत सुधर रही है। कल बंगलोरमें आ गया हूँ। नन्दीमें इस समय मेरे लिए ठण्ड ज्यादा पड़ रही है। यहाँ एक महीना तो रहूँगा ही। उसके बाद थोड़ा घूम सकूँगा, ऐसी आशा है । शास्त्रीजी सेवा कारना । सुशीला टाइप बैठाना आदि काम सीख ले और ईश्वरकी कृपासे वह स्वस्थ रहें तो तुम्हें काफी मदद मिलेगी और मैं भी यही चाहता हूँ । वहाँके एक-एक प्रश्नका बारीकीसे अध्ययन कर लेना तो तुमसे में जिस ज्ञानकी आशा रखता हूँ वह तुम्हें प्राप्त हो जायेगा । अपना खर्च व अपनी टीप-टाप ऐसी न रखना जिससे दूसरोंको तुमसे द्वेष हो । लोगोंकी तुम्हारे साथ निभती नहीं है इसका कारण कहीं यही तो नहीं है ?

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी० डब्ल्यू० ११३३) से ।
सौजन्य : सुशीलाबहन गांधी