सेवक और मुमुक्षुका कर्त्तव्य है। बीमारीमें दुष्ट वासना प्रतिमारूप बनकर खड़ी हो गई और पीछे देवी शक्तिने भी ऐसा ही किया यह अनुभव ठीक है। परंतु इतना समज लिया जाय कि दोनों निजकी मानसिक कृति है। और अच्छा धर्म यह है कि ऐसा अनुभव होनेकी भी हम प्रतिक्षा न करे । ईश्वर साक्षात्कार कोई चमत्कार नहीं है परंतु कठिन तपश्चर्याका यह शुभ फल है और उसका अनुभव आत्माका अविच्छिन्न आनंद ही सच्ची बात है। दूसरी सब वस्तु मिथ्या मानी जाय। और यही निष्काम सेवाका सच्चा धर्म है। दुःखके समय दुःखका निवारणकी प्रार्थना करना यद्यपि त्याजय नहीं है तो भी दुःखकी तितिक्षासे बढ़कर है। हम सुखकी भी इच्छा क्यों करें ? दुःख मिलो या सुख मिलो सब हमारे लिए एक ही बात लेना चाहिये । हम न सुखके लिये कोशिश करें न दुःखका समान तैयार करें। प्रतिक्षण जो कर्तव्य हमारे सामने आ जाता है उसको किसी अवस्थामें करें।
पहले जो मैंने पत्र लिखा वह मिला होगा। महराजके तर्कसे और अन्य अधिकारीके तर्कसे जो मदद मिल रही है वह संतोषकी बात है।
बापूके आशीर्वाद
- मूल (जी० एन० ६५३०) की फोटो-नकलसे ।
४७०. टिप्पणी
नेलौर जिलेमें खादी-कार्य
देशभक्त कोण्डा वेंकटप्पैयाने आन्ध्रके नेलौर जिलेमें हुई खादीकी प्रगतिके सम्बन्धमें निम्नलिखित टिप्पणियाँ [१]भेजी हैं। इन टिप्पणियोंमें ऐसी काफी कुछ चीजें हैं जिनका अनुकरण हरेक नगरपालिका और अन्य खादी संस्थाएँ कर सकती हैं।
- [ अंग्रेजीसे ]
- यंग इंडिया, ९-६-१९२७
- ↑ यहाँ नहीं दी जा रही हैं।