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४७१. आश्रम चर्मालय

अब मैं पाठकोंको यह सूचित करनेकी स्थितिमें हूँ कि वे सत्याग्रहाश्रम, साबरमतीके चर्मालय विभागसे मरे जानवरोंकी खाल साफ करके कमाया हुआ उम्दा चमड़ा प्राप्त कर सकते हैं। चप्पलें, कमर पेटियाँ इत्यादि चीजें तो यहां बनने भी लग गई हैं। पर ये अभी इतनी तादाद में नहीं बन रही हैं कि जिनसे बाहरसे आनेवाली सभी फरमाइशें पूरी की जा सकें। अलबत्ता तैयार किये गये चमड़ेकी फरमाइशोंको काफी हदतक जरूर पूरा किया जा सकता है। चमड़ा तीन रंगोंका तैयार किया गया है, काला, पीला और कत्थई रंगका । कीमतके खयालसे यह दो प्रकारका है। एक १।। और दूसरा १ रुपया प्रति रतल । जो लोग इस प्रयोगको सफल बनाना चाहते हों अथवा जो केवल मरे जानवरोंके चमड़ेको ही उपयोग में लाना चाहें, वे विशेष जानकारीके लिए सत्याग्रहाश्रम, साबरमतीके चर्मालयके व्यवस्थापकसे पत्र-व्यवहार करें। जबतक आश्रम अपने यहाँ बूट, शू, आदि चमड़ेकी बनी अन्य चीजें काफी तादादमें नहीं बनाने लग जाता, तबतक मैं तो यही सुझाव दूंगा कि ग्राहक आश्रमसे तैयार किया गया चमड़ा मँगा लिया करें और अपनी जरूरतकी वस्तुओंको अपने मोचियों द्वारा बनवा लिया करें। हम खादी खरीदकर जिस तरह कपड़े बनवा लेते हैं, उसी तरह चमड़ा खरीदनेकी आदत डाल लें और अपनी आवश्यकताके अनुसार जरूरतकी चीजें बनवा लें, तो इस तरह तैयार माल उन्हें सस्ता पड़ेगा, सुगमता भी अधिक होगी और कम समय लगेगा। बहुतसे चर्मालय खोलना आसान काम नहीं है। चर्मालयोंको चमड़ेकी चीजें बनानेके कामसे मुक्त रखनेका अर्थ होगा कार्य विभाजनको समुचित रूप देना । यदि हम हलाल किये गये पशुओंकी खालोंकी जगह मरे जानवरोंकी खालें इस्तेमाल करनेके काममें तेजी लाना चाहते हैं तो उपरोक्त सलाह मानना उचित होगा अर्थात् आश्रमके चर्मालयोंको चमड़ेकी वस्तुएँ बनानेके भारसे मुक्त रखना होगा ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ९-६-१९२७