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४७२. खादी सदस्यता

अपने इस वर्षके कार्यकालमें कांग्रेस अध्यक्ष श्रीयुत श्रीनिवास आयंगार हिन्दू-मुस्लिम एकताके लिए, यदि वह मानवके प्रयत्नों द्वारा हो सकती हो, तो उसे स्थापित करनेका अपनी शक्तिभर अथक प्रयत्न कर रहे हैं । और साथ ही कोई अन्य काम करके अपने कार्यकालको विशिष्ट एवं उल्लेखनीय बनानेका पूरा प्रयत्न कर रहे हैं। जब वे नन्दीमें कृपा करके मुझसे मिलने आये थे, उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं कांग्रेस संस्थाके सभी सदस्योंके लिए अनिवार्य रूपसे नित्य खादी पहननेकी शर्तमें कुछ ढील दूंगा। मैंने उनसे कहा कि इसमें रिआयत करनेकी तो कोई बात है ही नहीं । गौहाटीमें तो मैंने इस मौजूदा शर्तके बारेमें आग्रह किया ही नहीं था। पर जब मुझसे पूछा गया तो मैंने केवल अपनी राय व्यक्त कर दी थी कि तजुर्बे से यही बात साफ हो गई कि या तो खादीकी शर्त बिलकुल ही उठा दी जानी चाहिए या फिर शर्तको थोड़ा और कड़ा कर देना चाहिए ताकि खादी न सिर्फ खास मौकोंपर पहनना लाजिमी हो, बल्कि आदतन रोज पहनना जरूरी हो । उसके बादसे अबतक तो अपनी इस रायको बदलनेका कोई कारण मुझे नहीं दिखा है।

परन्तु कांग्रेसके सदस्य अगर किसी भी प्रकारका अनुशासन नहीं चाहते या यदि वे उसे चाहते हुए भी आदतन खादी पहननेकी शर्त नहीं चाहते और यदि वे खादी सम्बन्धी प्रस्तावका मखौल उड़ायेंगे और जब भी मौका मिलेगा खादीके नियमका उल्लंघन करेंगे तो फिर बेहतर यही है कि यह शर्त जरूर हटा दी जाये। एक लोक- प्रिय संस्था में बहुसंख्यक लोगोंकी रायपर ध्यान देना ही चाहिए। मैं तो हमेशा मानता आया हूँ कि किसी संस्थाके अल्पसंख्यक काफी लोग आचार सम्बन्धी किसी नियमपर जब आपत्ति उठायें तो बहुसंख्यक लोगोंके लिए यह चीज शोभाजनक होगी तथा कांग्रेसके लिए हितकर होगी कि ये लोग अल्पसंख्यक लोगोंकी बात मान लें । जहाँ बहुसंख्यक अल्पसंख्यकों द्वारा गहराईसे महसूस की जानेवाली किसी रायकी अपनी संख्याके बल पर पूर्ण अवहेलना करता हुआ आगे बढ़ता है वहाँ हिंसाकी गन्ध आने लगती है। बहुसंख्याका नियम तो सिर्फ वहीं बिलकुल ठीक ढंगसे चलता है जहाँ विरोधी लोग अपनी बातपर हठपूर्वक जोर नहीं देते रहे हों और जहाँ वे अच्छे खिलाड़ियोंकी तरह बहुसंख्यकोंकी बातको मानते हों। कोई भी संस्था जब विभिन्न दलोंमें बँट गई हो और वे एक दूसरे दलपर अशिष्टताके साथ रोष प्रदर्शित किया करते हों और येनकेन प्रकारेण अपनी ही बात ऊपर रखनेकी ठाने बैठे हों तो वह सुचारू रूपसे काम नहीं कर सकती। इसलिए मुझे अध्यक्ष महोदयसे यह साफ-साफ कह देनेमें कोई झिझक नहीं हुई कि यदि अल्पसंख्यक सदस्य उस शर्तका पालने करनेको राजी न हों तो उन्हें उस शर्तको हटा देनेमें मदद करनी चाहिए ।

पर यह बात मेरी व्यक्तिगत रायसे बिलकुल भिन्न है । मुझसे अपनी राय बदलने के लिए निवेदन करना, जैसा कि पहले अनेक बार किया जा चुका है, मेरे साथ