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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कमसे-कम कहा जाये, तो अन्याय करना होगा। मुझे खादी सम्बन्धी शर्तके बारेमें तथा कांग्रेसके कामको किस तरह चलाया जाये इसके बारेमें अपनी रायपर तो कायम रहने दिया जाये। मैं तो केवल इतना ही कह सकता हूँ कि मेरी रायका कांग्रेसके किसी अन्य सदस्यकी रायसे अधिक महत्त्व न हो । मेरी निजी राय तो साफ यही और केवल यही है कि यदि कांग्रेस देशके लाखों भूखों मरनेवाले लोगोंके साथ एक ठोस सम्बन्ध बनाये रखना चाहती है, तो यदि वह उच्च वर्गों और गरीब जनताके बीच सम्बन्ध स्थापित करनेवाली इस एक-मात्र कड़ी खादीको छोड़ देगी तो बड़ी गलती करेगी। लेकिन मैं जानता हूँ कि हमारे देशमें दूसरे प्रकारके विचारों- वाला भी एक दल है, जो खादीको उच्च वर्गके लोगों तथा जनताके बीच सम्बन्ध स्थापित करनेवाली वस्तु नहीं मानता, बल्कि यह समझता है कि खादी तो महात्मा की सनक अथवा धुन है। इस दलके लोगोंकी राय भी उसी सम्मानकी पात्र है जिस सम्मानका मैं अपने मतके लिए दावा करता हूँ। जरूरत इस बातकी है कि कांग्रेस अध्यक्ष और उसके सदस्य इस प्रश्नका निपटारा अच्छे और बुरे गुणोंके आधारपर करें। और अपने दिलसे यह पूछें कि कांग्रेसका हित किसमें है । और तदनुसार फिर निर्भयतापूर्वक निर्णय करें ।

आखिरकार यदि खादी बनी रहनेवाली है तो वह ऐसी शक्ति है कि उसके गुणोंको मानना ही होगा। यदि उसका समर्थन करनेके लिए दृढ़प्रतिज्ञ, सच्चे और स्वार्थत्यागी कार्यकर्ता मौजूद हैं, यदि सचमुच उसकी कोई सहज उपयोगिता है, तो कांग्रेस भले ही अपनी बुद्धिके अनुसार मतदानकी एक शर्तके रूपमें उसको त्याग दे या वह उसे बिलकुल ही त्याग दे फिर भी वह प्रगति करेगी। कोई भी वस्तु जो देशमें एक सजीव शक्ति बन जायेगी उसे सबसे पहले कांग्रेस ही मान्यता देगी। हाँ, जबतक कि वह वस्तु अपनी शक्तिका परिचय नहीं दे देती, तबतक कांग्रेस उसकी उपेक्षा भले ही करती रह सकती है। ऐसी कई चीजें हो सकती हैं और निस्सन्देह हैं भी जो स्वयं अच्छी हैं । परन्तु कांग्रेस जैसी एक विशाल लोकप्रिय संस्था उन्हें महज इसलिए नहीं अपना सकती कि वे अच्छी हैं। वह तो ऐसी ही चीजोंको अपना सकती है जिन्हें अच्छी होनेके साथ-साथ आम जनताका समर्थन भी प्राप्त हो । यदि उसे यह समर्थन प्राप्त न हो तो कांग्रेस लोगोंकी प्रतिनिधि संस्था ही नहीं रह जायेगी, बल्कि वह केवल सुधारकों और झक्की लोगोंकी प्रतिनिधि बन जायेगी ।

इसलिए कांग्रेसके सदस्योंको चाहिए कि वे मेरी अथवा किसी अन्य व्यक्तिकी रायसे प्रभावित हुए बिना इस प्रश्नपर एक निर्णय कर लें। यदि उनका अपना अनुभव उन्हें यह बताता है कि देश में खादीको समर्थन नहीं प्राप्त है, यदि उनका खयाल है कि जनसाधारणको खादीसे सरोकार नहीं है तो वे खादीकी उस अप्रिय शर्तको बिना किसी संकोच हटा दें।

मैंने अपना यह विचार अनेक बार व्यक्त किया है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीको ऐसा मानकर कि वह स्वयं कांग्रेस है न केवल हर जरूरी बातका निर्णय करनेका ही अधिकार है, बल्कि वह निर्णय करनेके लिए बाध्य भी है, और इस