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हम क्या गँवा रहे हैं ?

हमारी पीढ़ीके लिए इतने ही महत्त्वपूर्ण है, जितना सबसे बड़ा राजनैतिक प्रश्न । राष्ट्रका निर्माण करनेवाला कार्यक्रम राष्ट्रके किसी भी हिस्सेको अछूता नहीं छोड़ सकता। विद्यार्थियोंको देशके करोड़ों मूक देशभाइयोंके बीच काम करना होगा। उन्हें एक प्रान्त, एक शहर, एक वर्ग या एक जातिकी पृष्ठभूमिमें नहीं, बल्कि समस्त देशकी पृष्ठभूमिमें विचार करना सीखना चाहिए। उन्हें उन करोड़ोंका विचार करना होगा, जिनमें अछूत, शराबी, गुण्डे और वेश्याएँ भी शामिल हैं और जिनके अस्तित्वके लिए हममें से हर व्यक्ति जिम्मेदार है। प्राचीन कालमें विद्यार्थी ब्रह्मचारी कहे जाते थे। ईश्वर- भीरु और ईश्वरीय नियमोंके अनुसार चलते थे। राजा और बड़े-बूढ़े लोग भी उनका आदर करते थे । देश स्वेच्छापूर्वक उनका भार वहन करता था, और इसके बदलेमें वे देशकी सेवामें सौ गुना शक्तिमान आत्मा, सशक्त मस्तिष्क और वलशाली भुजाएँ अर्पित करते थे। आजकल भी आपद्ग्रस्त देशोंमें जहाँ भी विद्यार्थी हैं, वे देशकी आशाके अवलम्ब समझ जाते हैं, और वे प्रत्येक विभागमें स्वार्थत्यागी, समाज सुधारक नेताओंके रूपमें सामने आये हैं। मेरे कहनेका यह मतलब हरगिज नहीं कि भारतमें ऐसे कोई उदाहरण नहीं है । वे हैं जरूर, पर बहुत ही थोड़े हैं। म जिस चीजपर जोर दे रहा हूँ वह यह है कि विद्यार्थियोंकी परिषदोंको चाहिए कि वे ऐसे व्यवस्थित कार्यको अपना लक्ष्य बनायें जो ब्रह्मचारियोंके पदके अनुरूप हों।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ९-६-१९२७

 

४७४. हम क्या गँवा रहे हैं ?

'यंग इंडिया' के पाठक श्री ग्रेगके नामसे परिचित हैं। देशको प्रभावित करने वाले कई सवालोंका अध्ययन वे बड़े ठोस तरीकेसे और ऐसे उत्साहसे कर रहे हैं, जो भारतके एक देशभक्त बेटेके योग्य है। हाथ-कताईके उनके अध्ययन और प्रयोग बराबर जारी हैं। पिछड़े वर्गोंके बच्चोंकी शिक्षामें भी वे प्रयोग कर रहे हैं। इन वर्गोंके कल्याणकार्यों में उनकी दिलचस्पी है। और इस सम्बन्धमें वे कृषिके सवालका भी अध्ययन कर रहे हैं। सत्याग्रहाश्रम, साबरमतीमें आर्थिक और स्वास्थ्यकी दृष्टिसे पाखानेकी इतनी अच्छी तरह सफाई होते देखकर अब वे व्यवस्थित ढंगसे इस प्रश्नका अध्ययन कर रहे हैं। एक प्रयोगात्मक फार्मकी स्थापनाका सुझाव रखते हुए एक पत्रमें वे कहते हैं :

फार्मकी एक विशेषता यह होगी कि वह पाखानका उपयोग इस तरह खादके रूपमें करेगा जैसे कि सत्याग्रहाश्रममें वहाँ उसे जमीनमें दबाकर किया जाता है। या फिर उस तरह जैसे कि चीन और जापानके किसान करते हैं । जहाँसे पाखाना इकट्ठा करना होगा उस पूरे क्षेत्रके सभी भंगियोंको सावधानीसे संगठित करनेकी और धीरे-धीरे पाखानेको अच्छेसे-अच्छे ढंगसे काममें लाने लायक बनाने का प्रशिक्षण देनेकी जरूरत होगी ।